tag:blogger.com,1999:blog-89913862251914489782024-03-13T08:30:44.366+05:30हिन्दी की बिंदी (*) http://hindikibindi.tk/इस ब्लॉग पर हिन्दी की चुनी हुई कहानियाँ, उपन्यास और अन्य रचनायें ऑनलाइन पढने के लिए उपलब्ध है।Unknownnoreply@blogger.comBlogger313125tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-20645098788567963822011-06-01T15:11:00.003+05:302011-06-01T15:20:21.935+05:30बाबा के आंदोलन के मुद्दे -यह लेख दैनिक भास्कर से साभार लिया गया है। और ज्यों का त्यों आप सभी के लिया यहाँ पर दिया जा रहा है। आप सभी की टिप्पणियां सादर आमंत्रित है। (बाबा रामदेव के आन्दोलन को समर्थन देने के लिए Toll Free No. 02233081122 पर Miss Call करें । ) भ्रष्टाचार के विरुद्ध बाबा रामदेव जो मोर्चा लगा रहे हैं, वह एक बेमिसाल घटना होगी। यदि दिल्ली में एक लाख और देश में एक करोड़ से भी ज्यादा लोग अनशन पर Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-30806304287012996302011-01-26T17:34:00.002+05:302011-01-26T17:40:27.574+05:30ठिठुरता हुआ गणतंत्रचार बार मैं गणतन्त्र-दिवस का जलसा दिल्ली में देख चुका हूं। पांचवीं बार देखने का साहस नहीं। आखिर यह क्या बात है कि हर बार जब मैं गणतन्त्र-समारोहदेखता, तब मौसम बड़ा क्रूर रहता। छ्ब्बीस जनवरी के पहले ऊपर बर्फ़ पड़ जाती है। शीत-लहर आती है, बादल छा जाते हैं, बूंदाबांदी होती है और सूर्य छिप जाता है। जैसे दिल्ली की अपनी कोई अर्थनीति नहीं है, वैसे ही अपना मौसम भी नहीं है। अर्थनीति जैसे डालर, पौण्ड, रुपयाUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-31264197771334950602010-12-16T14:26:00.001+05:302010-12-16T14:26:59.694+05:30दाग़ अच्छे हैं ! - डॉ. पुष्पेंद्र दुबेदूरदर्शन पर कपड़े धोने के साबुन का एक विज्ञापन अक्सर आता है। कीचड़ में लथपथ बच्चे को देख माँ उसे डाँटती-फटकारती नहीं है। उसकी बढ़ाई करते हुए कहती है ‘दाग़ अच्छे हैं’। विज्ञापन से लेकर लोकतंत्र के मंदिर तक दाग़ों को अच्छा बताया जा रहा है। यह लोकतंत्र के लिए शुभ लक्षण है। जब भी इस विज्ञापन को देखता हूँ मेरे सामने अपने देश के पूजनीय लोकतंत्र के मंदिर में बैठने वाले ‘सज्जनों’ की तस्वीर घूम जाती है। उसी Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-10741445704379518062010-12-16T14:13:00.000+05:302010-12-16T14:24:57.407+05:30भारतीय होने का ज़ज़्बा - डॉ. पुष्पेंद्र दुबेजब लोगों के पास कुछ काम नहीं रह जाता तब उनमें अचानक देशभक्ति का ज़ज़्बा पैदा हो जाता है। अधिकतर यह ज़ज़्बा सेवानिवृत्ति की उम्र के बाद ही जाग्रत होता है। आदमियों की गिनती शुरू होते ही भारतीय होने का ज़ज़्बा पैदा हो गया। ख़ुद में तो जागा ही दूसरों में जगाने के लिए भी बुझी मशाल लेकर निकल पड़े। लोगों को अपने भाषणों से यह याद दिलाने की तुम भारतीय पहले हो, भले ही तुम्हारी जाति कोई भी क्यों न हो। Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-7382130985421704182010-12-10T11:36:00.000+05:302010-12-10T11:40:50.674+05:30असली ख़ुशी - ललिता भाटियागौरव अपने दोस्त सोमू के घर गया "यार सोमू तुम्हारे घर में डीवी डी नहीं हे ओर तो ओर टी वी भी नहीं हे । तुम शाम को बोर नहीं होते । हम तो अपने घर में ख़ूब फिल्मे देखते हैं ।"नहीं शाम को जब पापा घर आते हेतो हम कुछ देर पार्क में फ़ुटबाल खेलते हे फिर घर आकर खाना खा कर होमवर्क करते हे सोते समय कहानी सुनते हैं । सोमू ने सहज अंदाज़ में कहा।गौरव को अपना घर याद आ रहा था । पापा शराब पी देर रात को घर आते ओर Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-20010411041476585572010-12-10T11:35:00.000+05:302010-12-10T11:36:04.187+05:30भविष्यवाणी - नन्दलाल भारतीपडोस की दो महिलायें आपस में बात कर रही थीं । एक भगवान से एक और पोता मांग रही थी । दूसरी महिला बहू की पहली डिलवरी है पोती मांग रही थी । एक और पोते की लालसा में बूढी हो रही महिला ने माथा ठोकते हुए कहा, आओ मंदिर चले।देापहर में मंदिर क्यों?अरे ! महात्मा आये हुए हैं, जो कहते है वही होता है। दोनों साथ हो लीं ।महिलाओं की बात सुनकर महात्माजी बोले, एवमस्तु । दोनों घरों मे किलकारियां गूंजी पर उल्टी । पोती Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-91305774983228009812010-10-03T11:56:00.000+05:302010-10-03T11:59:45.886+05:30ब्रह्माण्ड भैंस सुंदरी प्रतियोगिताहमारा दुधवाला सुबह से अधपगला हो गया था, सुबह-सुबह ही अपनी लाठी हाथ में लिए घुम रहा था। मैं बस स्टैंड जा रहा था। एक जो जजमान आने वाले थे, मैंने रामजी को खड़े हुए देख लिया, सोचा कि सुबह-सुबह कौन इसके मुँह लगे, दारु पीया हुआ है फ़ालतू समय और दिमाग़ दोनों ही ख़राब करेगा,इसलिए बचकर निकलना चाहता था। मैं सोच ही रहा था कि वह मुझे मत देखे, लेकिन उसने देख ही लिया और ज़ोर से आवाज़ दी- "महाराज पाय लागी,Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-78518307893318983482010-09-12T22:51:00.000+05:302010-09-12T22:52:17.553+05:30आपका एटिट्युड क्या है?एक बार की बात है एक जगह मंदिर बन रहा था और एक राहगीर वहां से गुजर रहा था।उसने वहां पत्थर तोड़ते हुए एक मजदूर से पूछा कि तुम क्या कर रहे हो और उस पत्थर तोड़ते हुए आदमी ने गुस्से में आकर कहा देखते नहीं पत्थर तोड़ रहा हूं आंखें हैं कि नहीं?वह आदमी आगे गया उसने दूसरे मजदूर से पूछा कि मेरे दोस्त क्या कर रहे हो? उस आदमी ने उदासी से छैनी हथोड़ी से पत्थर तोड़ते हुए कहा रोटी कमा रहा हूं बच्चों के लिए बेटेUnknownnoreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-30261070788026973712010-09-12T10:28:00.000+05:302010-09-12T10:29:12.756+05:30आचार्य विनोबा भावे की अहिंसा नीतिआचार्य विनोबा भावे अपने ज्ञान और सद्विचारों के कारण अत्यंत प्रिय थे। लोग उनसे उपदेश ग्रहण करने आते और प्राप्त ज्ञान को अपने व्यवहार में ढालकर बेहतर इंसान बनने का प्रयास करते। हर विषय पर उनके विचार इतने स्पष्ट और सरल होत कि सुनने वाले के हृदय में सीधे उत्तर जाते। उनके शिष्यों में न केवल भारतीय बल्कि विदेशी भी शामिल थे। एक बार आचार्य विनोबा पदयात्रा करते हुए अजमेर पहुंचे। वहां भी उनके काफी शिष्य Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-19435963017486467352010-09-12T10:15:00.000+05:302010-09-12T10:16:32.858+05:30पितृभक्तिहारूं रशीद बगदाद का बहुत नामचीन बादशाह था। एक बार किसी कारण से वह अपने वजीर पर नाराज हो गया। उसने वजीर और उसके लड़के फजल को जेल में डलवा दिया।वजीर को ऐसी बीमारी थी कि ठंडा पानी उसे हानि पहुंचाता था। उसे सुबह हाथ-मुंह धोने को गर्म पानी आवश्यक था। किंतु जेल में गर्म पानी कौन लाए? वहां तो कैदियों को ठंडा पानी ही दिया जाता था।फजल रोज शाम लौटे में पानी भरकर लालटेन के ऊपर रख दिया करता था। रातभर लालटेन Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-32050644046131182592010-09-12T10:11:00.001+05:302010-09-12T10:14:23.927+05:30जीवन नहीं बदल सकतेअपना जीवन न तो किसी को दिया जा सकता है और ना ही किसी से उसका जीवन उधार लिया जा सकता है। जिन्दगी में प्रेम का, खुशी, का सफलता या असफलता का निर्माण आपको ही करना होता है इसे किसी और से नहीं पाया जा सकता है।बात दूसरे महायुद्ध के समय की है। इस युद्ध में मरणान्नसन सैनिकों से भरी हुई उस खाई में दो दोस्तों के बीच की यह अद्भुत बातचीत हुई थी। जिनमें से एक बिल्कुल मौत के दरवाजे पर खड़ा है। वह जानता है कि वहUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-50784846923481285912010-09-12T10:08:00.000+05:302010-09-12T10:09:01.579+05:30संत दादू के पदपूजे पाहन पानीदादू दुनिया दीवानी, पूजे पाहन पानी।गढ़ मूरत मंदिर में थापी, निव निव करत सलामी।चन्दन फूल अछत सिव ऊपर बकरा भेट भवानी।छप्पन भोग लगे ठाकुर को पावत चेतन न प्रानी।धाय-धाय तीरथ को ध्यावे, साध संग नहिं मानी।ताते पड़े करम बस फन्दे भरमें चारों खानी।बिन सत्संग सार नहिं पावै फिर-फिर भरम भुलानी।रूप रंग से न्यारादादू देखा मैं प्यारा, अगम जो पंथ निहारा।अष्ट कँवल दल सुरत सबद में, रूप रंग से न्यारा।Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-11206102499473497912010-09-12T10:04:00.000+05:302010-09-12T10:05:07.477+05:30संतोष का पुरस्कारआसफउद्दौला नेक बादशाह था। जो भी उसके सामने हाथ फैलाता, वह उसकी झोली भर देता था।एक दिन उसने एक फकीर को गाते सुना- जिसको न दे मौला उसे दे आसफउद्दौला। बादशाह खुश हुआ। उसने फकीर को बुलाकर एक बड़ा तरबूज दिया। फकीर ने तरबूज ले लिया, मगर वह दुखी था। उसने सोचा- तरबूज तो कहीं भी मिल जाएगा। बादशाह को कुछ मूल्यवान चीज देनी चाहिए थी। थोड़ी देर बाद एक और फकीर गाता हुआ बादशाह के पास से गुजरा। उसके बोल थे- मौलाUnknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-61164956867267214582010-04-23T18:31:00.001+05:302010-04-23T18:31:23.911+05:30नीरज के गीतअब तो मजहब कोई, ऐसा भी चलाया जाएजिसमें इनसान को, इनसान बनाया जाएआग बहती है यहाँ, गंगा में, झेलम में भीकोई बतलाए, कहाँ जाकर नहाया जाएमेरा मकसद है के महफिल रहे रोशन यूँहीखून चाहे मेरा, दीपों में जलाया जाएमेरे दुख-दर्द का, तुझपर हो असर कुछ ऐसामैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी ना खाया जाएजिस्म दो होके भी, दिल एक हो अपने ऐसेमेरा आँसू, तेरी पलकों से उठाया जाएगीत गुमसुम है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखीऐसे माहौल Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-56868627622290115852010-04-23T18:27:00.001+05:302010-04-23T18:29:18.115+05:30गुरु नानकदेव के पदझूठी देखी प्रीत जगत में झूठी देखी प्रीत।अपने ही सुखसों सब लागे, क्या दारा क्या मीत॥मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत।अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत।नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥#को काहू को भाईहरि बिनु तेरो को न सहाई।काकी मात-पिता सुत बनिता, को काहू को भाई॥धनु धरनी अरु संपति सगरी जो मानिओ अपनाई।तन छूटै कुछ संग न चालै, कहा ताहि Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-40854067628114862662010-04-22T10:56:00.001+05:302010-04-22T10:58:28.333+05:30यशपाल की कहानी - करवा का व्रतकन्हैयालाल अपने दफ्तर के हमजोलियों और मित्रों से दो तीन बरस बड़ा ही था, परन्तु ब्याह उसका उन लोगों के बाद हुआ। उसके बहुत अनुरोध करने पर भी साहब ने उसे ब्याह के लिए सप्ताह-भर से अधिक छुट्टी न दी थी। लौटा तो उसके अन्तरंग मित्रों ने भी उससे वही प्रश्न पूछे जो प्रायः ऐसे अवसर पर दूसरों से पूछे जाते हैं और फिर वही परामर्श उसे दिये गये जो अनुभवी लोग नवविवाहितों को दिया करते हैं। हेमराज को कन्हैयालाल Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-27177811719840831702010-04-22T10:53:00.001+05:302010-04-22T10:55:11.410+05:30मीरा के पददरद न जाण्यां कोयहेरी म्हां दरदे दिवाणी म्हारां दरद न जाण्यां कोय।घायल री गत घाइल जाण्यां, हिवडो अगण संजोय।जौहर की गत जौहरी जाणै, क्या जाण्यां जिण खोय।दरद की मार्यां दर दर डोल्यां बैद मिल्या नहिं कोय।मीरा री प्रभु पीर मिटांगां जब बैद सांवरो होय॥#अब तो हरि नाम लौ लागीसब जग को यह माखनचोर, नाम धर्यो बैरागी।कहं छोडी वह मोहन मुरली, कहं छोडि सब गोपी।मूंड मुंडाई डोरी कहं बांधी, माथे मोहन टोपी।मातु Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-37121635393073530622010-04-22T10:50:00.001+05:302010-04-22T10:53:30.031+05:30रहीम के दोहेएकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय॥ देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन॥अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम।सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम॥ गरज आपनी आप सों रहिमन कहीं न जाया।जैसे कुल की कुल वधू पर घर जात लजाया॥ छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात।कह ‘रहीम’ हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥ तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-13353084603626894282010-04-22T10:48:00.000+05:302010-04-22T10:49:13.121+05:30कबीर की कुंडलियांमाला फेरत जुग गया फिरा ना मन का फेरकर का मनका छोड़ दे मन का मन का फेरमन का मनका फेर ध्रुव ने फेरी मालाधरे चतुरभुज रूप मिला हरि मुरली वालाकहते दास कबीर माला प्रलाद ने फेरीधर नरसिंह का रूप बचाया अपना चेरो#आया है किस काम को किया कौन सा कामभूल गए भगवान को कमा रहे धनधामकमा रहे धनधाम रोज उठ करत लबारीझूठ कपट कर जोड़ बने तुम माया धारीकहते दास कबीर साहब की सुरत बिसारीमालिक के दरबार मिलै तुमको दुख भारी#Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-75561786542336292072010-04-22T10:47:00.002+05:302010-04-22T10:48:12.296+05:30कबीर की साखियाँ - 2चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह ।जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥ माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥ तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥ गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥ सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद ।कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥ साईं इतना दीजिये, जा Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-10135841003504695732010-04-22T10:43:00.001+05:302010-04-22T10:45:39.661+05:30कबीर की साखियाँकस्तुरी कुँडली बसै, मृग ढ़ुढ़े बब माहिँ.ऎसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखे नाहिँ..प्रेम ना बाड़ी उपजे, प्रेम ना हाट बिकाय.राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देई लै जाय ..माला फेरत जुग गाया, मिटा ना मन का फेर.कर का मन का छाड़ि, के मन का मनका फेर..माया मुई न मन मुआ, मरि मरि गया शरीर.आशा तृष्णा ना मुई, यों कह गये कबीर ..झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद.खलक चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद..वृक्ष कबहुँ नहि Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-38257506619998470592010-04-22T10:40:00.001+05:302010-04-22T10:40:38.615+05:30मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार - निदा फ़ाज़लीमैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यारदुख ने दुख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तारछोटा करके देखिये जीवन का विस्तारआँखों भर आकाश है बाहों भर संसार लेके तन के नाप को घूमे बस्ती गाँवहर चादर के घेर से बाहर निकले पाँवसबकी पूजा एक सी अलग-अलग हर रीतमस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीतपूजा घर में मूर्ती मीर के संग श्यामजिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीरजिस दिन सोए देर तक भूखा रहेUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-79420605667705968752010-04-22T10:35:00.001+05:302010-04-22T10:37:57.903+05:30कहीं छत थी दीवार-ओ-दर थे कहीं - निदा फ़ाज़लीकहीं छत थी दीवार-ओ-दर थे कहींमिला मुझको घर का पता देर सेदिया तो बहुत ज़िन्दगी ने मुझेमगर जो दिया वो दिया देर से हुआ न कोई काम मामूल सेगुज़ारे शब-ओ-रोज़ कुछ इस तरहकभी चाँद चमका ग़लत वक़्त परकभी घर में सूरज उगा देर से कभी रुक गये राह में बेसबबकभी वक़्त से पहले घिर आई शबहुये बंद दरवाज़े खुल खुल के सबजहाँ भी गया मैं गया देर से ये सब इत्तिफ़ाक़ात का खेल हैयही है जुदाई यही मेल हैमैं मुड़ मुड़ के Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-73124364500706122032010-04-22T10:32:00.002+05:302010-04-22T10:38:20.473+05:30कभी कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है - निदा फ़ाज़लीकभी कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया हैजिन बातों को ख़ुद नहीं समझे औरों को समझाया है हमसे पूछो इज़्ज़त वालों की इज़्ज़त का हाल कभीहमने भी इस शहर में रह कर थोड़ा नाम कमाया है उससे बिछड़े बरसों बीते लेकिन आज न जाने क्योंआँगन में हँसते बच्चों को बे-कारण धमकाया है कोई मिला तो हाथ मिलाया कहीं गए तो बातें कीघर से बाहर जब भी निकले दिन भर बोझ उठाया है Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8991386225191448978.post-50276696048605812182010-04-16T07:34:00.000+05:302010-04-16T07:35:12.076+05:30लाज - कहानी अरे बेटा.. दूर की चाची गोविन्द से कह रही थी- तुम्हें तो बहू ने फांस ही लिया। तुमने अपनी पढाई में लाखों रुपये खर्च किये और बहू ने तुम्हें दिया ही क्या? यही एक अलमारी, टीवी और बेड। भला ये भी कोई दहेज होता है शादी में। वो तो ठीक है चाची। गोविन्द ने एक बार चाची की तरफ देखा और पास बैठी अपनी पत्नी के सिर पर हाथ रखते हुए कहा- लेकिन यदि मैं दहेज के पीछे भागता तो आज इतनी प्यारी पत्नी पाने से वंचित Unknownnoreply@blogger.com2