01 अप्रैल, 2010

जोकर

एक आदमी साइकोलॉजिस्ट से मशविरा लेने आया था। वह अपनी बारी के इंतज़ार में चेंबर के बाहर बैठा था। उसकी शक्ल से ही लग रहा था कि वह महादुखी मानव है। चेहरा लटका हुआ, होंठों पर हंसी का एक निशान तक न था।

वह औरों से बोलना तो दूर, उनकी तरफ़ देख भी नहीं रहा था। कुछ देर बाद उसका भी नंबर आया। साइकोलॉजिस्ट अनुभवी था। वह उसे देखते ही पहचान गया कि यह अवसाद का केस है। फिर भी उसने समस्या पूछी। आदमी ने बोलना शुरू किया,‘डॉक्टर साहब, मैं हमेशा हताशा में ही डूबा रहता हूं। चाहे कुछ भी कर लूं, मन में उत्साह जागता ही नहीं।

अब आप ही बताएं कि मैं क्या करूं!’ मनोचिकित्सक ने कहा, ‘मेरे साथ उस खिड़की तक आओ।’ जब वह उसके पीछे वहां तक पहुंचा, तो मनोचिकित्सक ने खिड़की से बाहर इशारा करते हुए कहा, ‘तुम दूर वो तंबू देख रहे हो? वह सर्कस का तंबू है। मैंने वह सर्कस देखा है, बहुत शानदार है। वहां तुम्हें ढेर सारे करतब देखने को मिलेंगे,ख़ासतौर पर एक जोकर के कारनामे देखकर तो हंस-हंस कर लोट-पोट हो जाओगे।

वह जब तक तुम्हारी नज़रों के सामने रहेगा, तुम हंसी नहीं रोक पाओगे। मैं शर्त लगाकर कह सकता हूं कि एक बार उस जोकर की कलाकारी देख लेने के बाद अवसाद ज़िन्दगी में दुबारा तुम्हारे पास नहीं फटकेगा।’
यह सब सुनकर भी उस आदमी के चेहरे पर कोई मुस्कान नहीं आई। उसका लटका मुंह देखकर साइकोलॉजिस्ट ने कहा, ‘तुम वहां जाकर तो देखो।’ वह आदमी बोला, ‘साहब, वह जोकर मैं ही हूं।’

सबक: इस दुनिया में हर कोई अभिनय कर रहा है। हंसी-मजाक की ओट में कोई ग़म छिपा रहा है, तो कोई बेवजह आंसू बहाकर औरों से सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहा है।

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