हरिवंशराय 'बच्चन' का जन्म प्रयाग के पास अमोढ गाँव में हुआ। काशी से एम.ए. तक कैम्ब्रिज से अंग्रेजी साहित्य में डॉक्टरेट की। प्रयाग विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्राध्यापक रहे। पश्चात भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में राजभाषा के कार्यान्वयन में लगे। 'बच्चन आधुनिक युग के शीर्षस्थ गीतकार हैं। ये कवि सम्मेलनों में अत्यधिक लोकप्रिय हुए। इनके काव्य-संग्रहों में 'मधुशाला, 'मधुबाला, 'मधुकलश, 'मिलनयामिनी, 'आकुल-अंतर, 'निशानिमंत्रण, 'बंगाल का अकाल, 'सूत की माला मुख्य हैं। इन्होंने कई कविता संग्रह संपादित किए। तीन खंडों में प्रकाशित इनकी आत्मकथा भी लोकप्रिय हुई। नौ खंडों में प्रकाशित 'बच्चन रचनावली में इनका समग्र साहित्य संकलित है। 'पद्मभूषण से अलंकृत बच्चनजी राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं।
मधुशाला (अंश)
मृदु भावों के अंगूरों की
आज बना लाया हाला
प्रियतम अपने ही हाथों से
आज पिलाऊँगा प्याला;
पहले भोग लगा लूँ तेरा
फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत
करती मेरी मधुशाला!
एक बरस में एक बार ही
जगती होली की ज्वाला,
एक बार ही लगती बाजी
जलती दीपों की माला,
दुनियावालों किन्तु किसी दिन
आ मदिरालय में देखो,
दिन को होली, रात दिवाली,
रोज मनाती मधुशाला!
मुसलमान औ हिंदू हैं दो,
एक मगर उनका प्याला,
एक मगर उनका मदिरालय,
एक मगर उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक
मस्जिद-मंदिर में जाते,
बैर बढाते मस्जिद-मंदिर,
मेल कराती मधुशाला!
ज्ञात हुआ यम आने को है
ले अपनी काली हाला,
पंडित अपनी पोथी भूला,
साधू भूल गया माला,
और पुजारी भूला पूजा
ज्ञान सभी ज्ञानी भूला,
किन्तु न भूला मरकर के भी
पीनेवाला मधुशाला!
मतवालापन हाला से ले,
मैंने तज दी है हाला,
पागलपन लेकर प्याले से
मैंने त्याग दिया प्याला,
साकी से मिल, साकी में मिल
अपनापन मैं भूल गया,
मिल मधुशाला की मधुता में,
भूल गया मैं मधुशाला!
कहते हैं तारे गाते हैं
कहते हैं तारे गाते हैं!
सन्नाटा वसुधा पर छाया,
नभ में हमने कान लगाया,
फिर भी अगणित कंठों का यह राग नहीं हम सुन पाते हैं!
कहते हैं तारे गाते हैं!
स्वर्ग सुना करता यह गाना,
पृथिवी ने तो बस यह जाना,
अगणित ओस-कणों से तारों के नीरव ऑंसू आते हैं!
कहते हैं तारे गाते हैं!
ऊपर देव तले मानवगण,
नभ में दोनों गायन-रोदन,
राग सदा ऊपर को उठता, ऑंसू नीचे झर जाते हैं!
कहते हैं, तारे गाते हैं!
बैर बढाते मस्जिद-मंदिर,
जवाब देंहटाएंमेल कराती मधुशाला!
वाह, पढ़कर मन खुश हो दया। जितनी बार पढ़ो, हर बार नया आनंद मिलता है।
dhanyawad
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