06 दिसंबर, 2009

वार्ताकार और हुंकारा देनेवाला - शिवनारायण उपाध्याय

एक गांव में एक वार्ता कहनेवाला रहता था। उसे लम्बी वार्ता कहने का शौक था। लेकिन कोई हुंकारा देने वाला नहीं मिल रहा था। इसलिए उसने सोचा कि परदेश में चलना चाहिए, शायद वहां कोई मिल जाये।

चलते-चलते वर्षों बीत गये। कई गांवों ओर नगरों की यात्रा की, पर कोई हुंकारा देनेवाला नहीं मिला।

लाचार हो वह एक छोटे-से गांव के बाहर नीम की ठण्डी छांव देखकर उसके नीचे विश्राम करने बैठ गया। इतने में वहां से एक आदमी निकला और उसने पूछा, "क्यों भई, तुम कौन हो ? क्या काम करते हो ?"

उसने कहा, "मैं वार्ताकार हूं और लम्बी वार्ता कहना मेरा काम है। लेकिन वार्ता सुनाऊं तो किसे ? कोई हुंकारा देनेवाला नहीं मिल रहा है।"

उस आदमीने कहा, "वाह भाई वाह! तुम खूब मिले ! मैं सिर्फ हुंकारा देने का काम करता हूं और वर्षों से एक ऐसे आसदमी को खोज रहा हूं, जो लम्बी वार्ता कह सके। आज तुम मिल गये तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं है।"

इस तरह एक-दूसरे को पाकर दोनों बड़े प्रसन्न हुए। फिर उन्होंने स्नान किया, भोजन किया ओर भगवान का ध्ययान करके वार्ताकार ने अपनी लम्बी वार्ता कहनी शुरू की। दिन, महीने और वर्ष-पर-वर्ष बीतते गये, लेकिन न वार्ता खत्म हुई और न हुंकारे।

कुछ दिनो बाद लोगों ने देखा कि उस जगह दो हडिडयों के ढांचे पड़े हुए हैं। लोगों की कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वे उन्हों कोई चमत्कारी संत समझकर प्रणाम कर लौट जाते थे।

उधर वार्ताकार और हुंकारा देनेवाले की पत्नियां अपने-अपने पतियों के घर लौटने की राह देखते-देखते निराश हो गईं। वे दानों पतिव्रता थीं। इसलिए उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और पतियों की खोज में चल दीं। संयोग की बात, दोनों उसी पेड़ के नीचे पहुंचीं, जहां हडिडयों के दो ढांचे पड़े हुए थे। एक ने दूसरी से पूछा, "क्यों बहन, तुम्हारे पति क्या काम करते थे ?"

उसने कहा, "वे वार्ताकार थे और उन्हें लम्बी वार्ता कहने का शौक था। वे ऐसे आदमी की खोज में थे, जो सालों तक हंकारा देता रहे।"

दूसरी ने कहा, "मेरे पति हुंकारा देने वाले थे और ऐसे वार्ताकार की खोज में थे, जो लम्बी वार्ता कहे।"

दोनों ने सोचा, हो न हो, ये दोनों ढांचे हमारे पतियों के होने चाहिए। लेकिन उनमें से कौन-सा ढांचा वार्ताकार का था और कौन-सा हुंकारे वाले का, यह जानना मुश्किल था। तब दोनों ने तपस्या शुरू कर दी, वर्षों बीत गये। इस बीच एक संत वहां से निकले। उन्होंने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर कहा, ‘हे देवियो ! यदि तुम भगवान से प्रार्थना करके इन पर गंगा-जल छिड़को तो तुम्हारे पति तुम्हें मिल सकते हैं।"

तुरतं ही एक स्त्री ने भगवान से प्रर्थना की, "भगवान, यदि मैं सती होऊं तो मेरे पति वार्ता प्रारंभ कर दें।" ओर उसने उन ढांचों पर गंगा-जल छिड़का किएक ढांचे में हलचल हुई और उसने वार्ता कहना प्रारंभ कर दिया। फिर दूसरी स्त्री ने प्रार्थना की, "हे भगवान यदि मैं सती होऊं तो मेरे पति हुंकारा देने प्रारंभ कर दें।" और उसने ढांचे पर जल छिड़का। तुरंत दूसरे ढांचे में हलचल हुई और उसने हुंकारा देना प्रारंभ कर दिया।

तब से आज तक वार्ताएं चल रही हैं और हुंकारों की आवाज भी बराबर आती रहती हैं।

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