07 जुलाई, 2009

ताबूतसाज - कहानी (अलेक्सान्द्र पुश्किन)

ताबूतसाज आद्रियान प्रोखोरोव के घरेलू सामान की आखिरी चीजें भी गाड़ी पर लद गयीं मे जुते मरियल घोड़ों की जोड़ी ने चौथी बार सस्मान्नाया गली से निकीत्स्काया गली तक का चक्कर लगाया, जहां ताबूतसाज अपने समूचे घरबार के साथ जा बसा था। दुकान में ताला डालकर उसने दरवाजे पर एक तख्ती लगा दी कि यह घर बिक्री या किराये के लिए खाली है और अपने नये निवास-स्थान की ओर पैदल ही चल पड़ा। लेकिन जब वह उस नये पीले घर के निकट पहुंचा, जिसे खरीदने के लिए कितनी मुद्दत से उसके मन में चाह थी, और जिसे अब वह खासी रकम देकर खरीद पाया था, तो वह यह जानकर हैरान रह गया कि अब उसके दिल में कोई उमंग या खुशी नहीं है। अनजानी दहलीज लांघकर नयी जगह में पांव रखते समय जहां अभी तक सबकुछ अतव्यस्त और उल्टा-पलटा था, उसके मुंह से उस जर्जर दरबे के लिए एक आह निकल गयी, जिसे छोड़कर वह आया था। अठारह साल उसने वहां बिताये थे और व्यवस्था इतनी सख्त थी कि एक सींक भी इधर-से-उधर नहीं हो सकती थी। उसने अपनी दोनों लड़कियों और घर की नौकरानी को सुस्त कहकर डाटा और खुद भी उनका हाथ बंटाने में जुट गया। जल्द ही घर करीने से सज गया—देवमूर्ति का स्थान, चीनी के बरतनों की अलमारी, मेज, सोफे और पलंग—ये सब पिछले कमरे के विभिन्न कोनों में अपनी-अपनी जगह पर जमा दिये गए। घर के मालिक का समान, हर रंग और माप के ताबूत, मातमी लबादों-टोपियों और मशालों से भरी अलमारियां, रसोई और बैठक में जंचा दी गईं।बाहर दरवाजे के के ऊपर एक साइन बोर्ड लटका दिया गया, जिस पर उल्टी मशाल हाथ में लिए हृष्ट-पुष्ट आमूर1 की तस्बीर बनी थी और उसके नीचे लिखा था-"सादे और रंगीन ताबूत यहां बेचे और तैयार किये जाते हैं, किराये पर दिये जाते हैं और पुराने ताबूतों की मरम्मत भी की जाती है।" उसकी लड़कियां अपने कमरे में आराम करने चली गयीं और आद्रियान ने अपनी नयी जगह का मुआयना करने के बाद खिड़करी के पास बैठते हुए समोवार गर्म करने का आदेश दिया।
ताबूत साज का स्भाव उसके धंधे के साथ पूर्णतया मेल खाता था। आद्रियान प्रोखोरोव खामोश औ मुहर्रमी सूरत वाला आदमी था। वह बिरले ही अपनी खामोशी तोड़ता था, और सो भी उस समय, जब वह अपनी लड़कियों को निठल्लों की भांति खिड़कर से बाहर झांकते और राह चलतों पर नजर डालते देखता, या उस समय जब वह अपने हाथ की बनी चीजों के लिए उन अभागों से (या भाग्यशालियों से, मौके के अनुसार जैसा भी हो) कसकर दाम मांगता था,जिन्हें उन चीजों की जरूरत आ पड़ती थी। सो आद्रियान चाय का सांतवा खयालों में डूबा हुआ था।
यकाएक किसी ने बाहर के दरवाजे को तीन बार खटखटाया। ताबूतसाज के विचारों का तांता टूट गया। वह चौंककर चिल्लाया, "कौन है? तभी दरवाजा खुला और एक आदमी शक्ल-सूरतह से जिसे तुरन्त पहचाना जा सकता था कि यह कोई जर्मन दस्तकार है, भीतर कमरे मे चला आया और ताबूतसाज के निकट आकर प्रसन्न मुद्रा में खड़ा हो गया। "मुझे माफ करना, पड़ोसी महोदय," टूटी-फूटी रूसी भाषा में उसने कुछ इतने अटपटे अंदाज से बोलना शुरू किया कि उस पर आज भी हम अपनी हंसी नहीं रोक पाते हैं। "मुझे माफ करना, अगर मेरे आने से आपको काम में कोई बाधा हुई हो, लेकिन आपसे जान-पहचान करने के लिए मैं बड़ा उत्सुक हूं। मैं मोची हूं। गात्तिलब शूल्त्स मेरा नाम है। सड़क के उस पार ठीक सामने वाले उस छोटे-से घर में रहता हूं, जिसे आप अपनी खिड़की से देख सकते हैं। कल मै अपने विवाह की रजत जयंती मना रहा हूं और मैं आपको तथा आपकी लड़कियों को आमंत्रित करता हूं कि मेरे यहां आयें और प्रीति-भोज में शामिल हों।"
ताबूतसाज ने सिर झुका कर निमंत्रण स्वीकार कर लिया और मोची से बैठने तथा चाय पीने का अनुरोध किया। मोची बैठ गया। वह कुछ इतने खुले दिल का था कि शिघ्र ही दोनों अत्यंत घुल-मिलकर बातें करने लगे।,
"कहिये, आपके धंधे का क्या हाल-चाल है।" आद्रियान ने पूछा।
शूल्त्स ने जवाब दिया, कभी अच्छा, कभी बुरा, सब चलता है। यह बात जरूर है कि मेरा माल आपसे भिन्न है। जो जीवित हैं, वे बिना जूतों के भी रह सकते हैं, लेकिन मरने के बाद तो ताबूत के बिना काम चल नहीं सकता!"
"बिल्कुल ठीक कहते हो," आद्रियान ने सहमति प्रकट की, "लेकिन एक बात है। माना कि अगर जीवित आदमी के पास पैसा नहीं है, तो वह बिना जूतों के रह जाये और तुम्हें टाल जाये; लेकिन मृत भिखारी के साथ ऐसी बात नहीं। बिना कुछ खर्च किये ही वह ताबूत पा जाता है।"इस तरह बातचीत का यह सिलसिला कुद देर और चलता रहा। आखिर मोची उठा और अपने निमंत्रण को एक बार फिर दोहराते हुए उसने ताबूतसाज से विदा ली।
अगले दिन, ठीक दोपहर के समय, ताबूतसाज और उसकी लड़कियां नये खरीदे हुए घर के दरवाजे से बाहर निकले और अपने पड़ोसी से मिलने चल दिए।
मोची का छोटा-सा कमरा अतिथियों से भरा था।उनमें अधिकाशं जमर्न दस्तकार, उनकी पत्नियां और ऐसे युवक मौजूद थे, जो उनकी शागिर्दी कर रहे थे। रूसी सरकारी कारिन्दों में से केवल एक ही वहां मौजूद था—पुलिस का सिपाही यूर्को। जाति का वह चूखोन था और बावजूद इसके कि उसका पद निम्न स्तर का था, मेजबान उसकी आवभगत में खास तौर से जुटा था। पच्चीस साल से पूरी फरमाबरदारी के साथ वह अपनी नौकरी बजा रहा था।१८१२ के अग्निकाण्ड ने प्राचीन राजधानी को ध्वस्त करने के साथ-साथ उसकी पीली संतरी-चौकी को भी खाक में मिला दिया था। लकिन दुश्मन क दुम दबाकर भागते ही उसकी जगह पर एक नयी संतरी-चौकी का उदय हो गया—सलेटी रंग की और सफेद यूनानी ढंग के पायों से अलंकृत, और सिर से पांव से लैस यूर्को उसके सामने अब फिर, पहले की ही भांति, इधर-से-उधर गश्त लगाने लगा। निकीत्स्की दरवाजे के इर्द-गिर्द बसे सभी जर्मनों से वह परिचित था और उनमें से कुछ तो ऐसे थे, जो इतवार की रात उसकी संतरी-चौकी में ही काट देते थे। आद्रियान भी उससे जान-पहचान करने में पीछे नहीं रहा और जब अतिथियों ने मेज पर बैठना शुरू किया, तो ये दोनों एक-दूसरे के साथ बैठे। शूल्त्स, उसकी पत्नी और उनकी सत्रह-वर्षीय लड़की लोत्खेन अपने अथितियों के साथ भोजन में शामिल होते हुए भी परोसन और रकाबियों में चीजें रखने में बावर्ची की मदद दे रही थीं। बीयर खुलकर बह रही थी। यूर्को अकेले ही चार के बराबर खा-पी रहा था। आद्रियान भी किसी से पीछे नहीं था। उसकी लड़कियां बड़े सलीके से बैठी थीं। बातचीत का सिलसिला, जो जर्मन भाषा में चला रहा था, हर घड़ी जोर पकड़ रहा था। सहसा मेजबान ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा और कोलतार पुती एक बोतल का कार्क खोलते हुए रूसी भाषा में जोरो से चिल्लाकर कहा, "नेकदिल लूईजा की सेहत का जाम?"काग के निकलते ही तरल शैम्पने का फेन उड़ने लगा। मेजबान ने अपनी अधेड़ जीवन-संगिनी का ताजा रंगतदार चेहरा चूमा और अतिथियों ने हल्ले-गुल्ले के साथ नेक लुईजा के स्वसथ्य की जाम पिया। इसके बाद एक दूसरी बोतल का काग खोलते हुए मेजबान चिल्लाया, "प्यारे अतिथियों के स्वास्थ्य का जाम!" और अतिथियों ने बदले में धन्यवाद देते हुए फिर गिलास खाली कर दिये। इसके बाद स्वास्थ्यकामना के लिए गिलास खनकाने और खाली करने का जैसे तांता बंध गया। जितने अतिथि थे, एक-एक करके उन सबकी सेहत के जाम पिये गए, फिर मास्को और करीब एक दर्जन छोटे-मोटे जर्मन नगरों के नाम पर गिलास खनके, फिर सब धंधों के नाम पर एक साथ और उसके उसके बाद अलग-अलग करके, गिलास खाली हुए और इन धंधों में काम करने वालों कारीगरों तथा सभी नये शगिर्दो के स्वास्थ्य के नाम बोतलों के काग खुले। आद्रियान ने इतनी अधिक पी कि उस पर भी ऐसा रंग सवार हुआ कि उसने सचमुच एक अनूठे से जाम का प्रस्ताव किया। अचानक एक हट्टे-कट्टे अतितथि ने, जो डबलरोटी-बिस्कुट बनाने का काम करता था,अपना गिलास उठाते हुए चिल्लाकर कहा,"उन लोगों के स्वास्थ्य केलिए, जिनकी खातिर हम काम करते हैं।" इस कामना का भी पहले की भांति सभी ने खुशी से स्वागत किया। अतिथि एक-दूसरे के सामने झुक-झुककर गिलास खाली करने लगे—दर्जी मोची के सामने,मोची दर्जी के सामने, नानबाई इन दोनों के सामने, और सभी अतिथि एक साथ मिलकर नानबाई के सामने। एक-दूसरे के सामने झुककर पारस्परिक अभिवादन का यह सिलसिला अभी चल ही रहा था कि यूर्को ने ताबूतसाज की ओर मुंह करते हुए चिल्लाकर कहा, "आइये, पड़ोसी, आके मृत आसामियों के स्वास्थ्य का जाम पियें।" इस पर सभी हंस पड़े, केवल ताबूतसाज चुप रहा। उसे यह बुरा लगा और उसकी भौंहें चढ़ गयी। लेकिन इधर किसी का ध्यान नहीं गया, अतिथियों का दौर चलता रहा और जब वे मेज से उठे,तो उस समय रात की आखिरी प्रार्थना के लिए गिरजे की घंटियां बज रही थीं।
काफी रात ढल जाने पर अतिथि विदा हुए। अधिकांश नशे में धुत्त थे। हट्टा-कट्टा नानबाई और जिल्दसाज, पुलिस के सिपाही की दोनों बगलों में अपने हाथ डाले, उसे उसकी चौकी की ओर ले चले। ताबुतसाज भी अपने घर लौट आया था। वह गुस्से से भरा था और उसका दिमाग अस्त व्यस्त-सा हो रहा था।"आखिर," उसने सस्वर सोचा, "मेरा धंधा क्या अन्य धंधों सो कम सम्मानपूर्ण है? ताबूतसाज और जल्लाद क्या भाई-भाई हैं? क्या उन्हें एक साथ रखा जा सकता है? तो फिर इन विदेशियों के हंसने में क्या तुक थीं? वे क्यों हंसे? क्या वे ताबूतसाज को रंगबिरंगे कपड़ों वाला विदूषकह समझते हैं? फिर मजा यह कि मैं इन सबको गृह-प्रवेश के प्रीतिभोज में बुलाने जा रहा था। ओह नहीं, मैं ऐसी बेवकूफी नहीं करूंगा। मैं उन्हें ही बुलाऊंगा, जिनके लिए मैं काम करता हूं—अपने ईसाई मृतकों को!"
"ओह, मालिक!" नौकरानी ने, जो उस समय ताबूतसाज के पांव से जूते उतार रही थी, कहा, "जरा सोचिये तो सही कि यह आप क्या कर रहे हैं! सलीब का चिह्न बनाइये,कहीं मृतकों को भी गृह प्रवेश के लिए बुलाया जाता है? कितनी भयानक बात है यह!"
"ईश्वर साक्षी है, यह मैं जरूर करूंगा," आद्रियान ने कहना जारी रखा, "और कल ही।ऐ मेरे आसामियों, मेरे सुभचिंतकों, ककल रात भोज में शामिल होकर मुझे सम्मानित करना। जो कुछ रूखा-सूखा मेरे पास है, सब तुम्हारा ही दिया हुआ तो है।"
इन शब्दों के साथ ताबूतसाज ने बिस्तार ने बिस्तर की शरण ली और कुछ ही देर बाद खर्राटे भरने लगा।
सुबह जब आद्रियान की आंखें खुलीं, तो उस समय काफी अंधेरा था। सौदागर की विधवा त्रूखिना रात में ही मर गयी थी और उसके कारिन्दे द्वारा भेजे गये एक आदमी ने आकर इसकी खबर दी थी। वह घोड़े पर सवार तेजी से उसे दौड़ता आया था। ताबूतसाज ने वोदका के लिए दस कोपेक उसे इनाम में दिये, झटपट कपड़े पहने, एक गाड़ी पकड़ी और उस पर सवार होकर राज्गुल्याई पहुंचा। मृतक के घर के दरवाजे पर पुलिस वाले पहले से तैनात थे और सौदागर इधर-से-उधर इस तरह मंडरा रहे थे, जैसे सड़ी लाश की गंध पाकर कौवे मंडराते हैं। शव मेज पर रखा था, चेहरा मोमियाई मालूम होता था, लेकिन नाक-नक्श अभी बिगड़ा नहीं था। सगे-संबंधी, अड़ोसी-पड़ोसी और नौकर-चाकर उसके चारों ओर खड़े थे। खिड़कियां सभी खुलीं थीं, मोमबत्तियां जल रही थीं और पादरी मृतक स्त्री के भतीजे के पास पहुंचा। वह युवक सौदागर था और फैशनदार कोट पहने था। आद्रियान ने उसे सूचना दी कि ताबूत, मोमबत्तियां, ताबूत ढंकने का कफन और अन्य मातमी साज-सम्मान बहुत ही बढ़िया हालत में तुरत जुटाये जायेंगे। योंही, लापरवाही से, मृतक के उत्तराधिकारी ने उसे धन्यवाद दिया और कहा कि दामों के सवाल पर वह झिकझिक नहीं करेगा और सबकुछ खुद ताबूतसाज के इमान और नेकनीयती पर पूर्णयतया छोड़ देगा। ताबूतसाज ने अपनी आदत के अनुसार शपथ लेकर कहा कि वह एक पाई भी ज्यादा वसूल नहीं करेगा और इसके बाद कारिन्दे ने उसकी ओर और उसने कारिन्दे की भेद-भरी नजर से देखा, और सामान तैयार करने के लिए गाड़ी पर सवार होकर घर लौट आया। दिन-भर वह इसी तरह राज्यगुलाई और निकीत्स्की दरवाजे के बीच भाग-दौड़ करता रहा। कभी जाता, कभी वापस लौटता। शाम तक उसने सभी कुछ ठीक-ठाक कर दिया और गाड़ी को विदा कर पैदल ही घर लौटा। चांदनी चात थी। सही-सलामत वह निकीत्स्की दरवाजे पहुंच गया। गिरजे के पास से गुजाते समय हमारे मित्र यूर्को ने उसे ललकारा, लेकिन जब देखा कि अपना ही ताबूतसाज है, तो उसका अभिवादन किया। देर काफी हो गयी थी। जब वह अपने घर के पहुंचा, तो यकायक उसे ऐसा लगा, मानो कोई दरवाजे के पास रुक गया है, और दरवाजे को खोलकर अन्दर जाकर गायब हो गया है। "यह क्या तमाशा है?"आद्रियान अचरज से भर उठा, "इस समय भला कौन मुझसे मिलने आ सकता है? कहीं कोई चोर तो नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं कि कोई सैलानी युवक है, जो रात को मेरी नन्हीं निठल्ली लड़कियों से साठं-गाठं करने आया हो?" एक बार तो उसने यहां तक सोच कि अपने मित्र यूर्को को मदद के लिए बुला लाये। तभी एक और व्यक्ति दरवाजे के पास पहुंचा और भीतर पांव रख ही रहा था कि ताबूतसाज को घर की ओर तेजी से लपकते हुए देखकर वह निश्चल खड़ा हो गया और अपने तिरछे टोप को उठाकर अभिवादन करने लगा।
आद्रियान को ऐसा लगा, जैसे उसने यह शक्ल कहीं देखी है, लेकिन जल्दी में उसे ध्यान से नहीं देख सका। हांफते हुए बोला, ‘‘क्या आप मुझसे मिलने आये हैं? चलिये, भीतर चलिये।’’
‘‘तकल्लुफ के फेर में न पड़ें, मित्र,’’ अनजान ने थोथी आवाज में कहा, ‘‘आगे-आगे आप चलिये और अपने हतिथियों का पथ-पदर्शन कीजिये!’’
आद्रियान को खुद इतनी उतावली थी कि चाहने पर भी वह तकल्लुफ निभा न पाता। उसने दरवाजा खोला और घर की सीढ़ियों पर पांव रखा। दूसरा भी उसके पीछे-पीछे चला। आद्रियान को ऐसा लगा कि उसके कमरों में लोग टहल रहे हैं। ‘‘हे भगवान, यह सब क्या तमाशा है!’’ उसने सोचा, और लपक कर भीतर पहुंचा। उसके पैर पड़खड़ा गये। कमरा प्रेतों से भरा था। खिड़की में से चांदनी भीतर पहुंच रही थी, जिसमें उनके पीले-नीले चेहरे, लटके हुए मुंह, धुंधली अधखुली आंखें और चपटी नाकें दिखाई दे रही थीं। आद्रियान ने भय से कांपकर पहचाना कि ये सब वही लोग हैं, जिनको दफ़नाने में उसने योग दिया था, और वह, जो उसके साथ भीतर आया था, वही ब्रिगेडियर था, जिसे मूसलाधार वर्षा के बीच दफनाया गया था। वे सब पुरुष और स्त्रियां भी, ताबूतसाज के चारों ओर इकट्ठे हो गये और सिर झुका-झुकाकर अभिवादन करने लगे। भागय का मारा केवल एक ही ऐसा था, जो कुछ दिन पहले मुफ्त दफनाया गया था, वहीं पास नहीं आया। बेबसी की मुद्रा बनाये वह सबसे अलग कमरे के एक कोने में खड़ा था, मानो अपने फटे हुए चिथड़ों को छिपाने का प्रयत्न कर रहा हो। उसके सिवा अन्य सभी बढ़िया कपड़े पहने थे,स्त्रियों के सिरों पर फीतेदार टोजियां थीं, स्वर्गवासी अफसर वर्दियां डाटे थे, लेकिन उनकी हजामतें बढ़ी थीं, सौदागरों ने एक-से-एक बढ़िया कपड़े छांट कर पहने थे। ‘‘देखो, प्रोखोरोव!’’ सबकी ओर से बोलते हुए ब्रिगेडियर ने कहा, ‘‘हम सब तुम्हारे निमंत्रण पर अपनी-अपनी कब्रों से उठकर आये हैं। केवल वे, जो एकदम असमर्थ हैं, जो पूरी तरह गल-सड़ चुके हैं, नहीं आ सके। इसके अलावा उन्हें भी मन मसोस कर रह जाना पड़ा, जो केवल हड्डियों का ढेर भर रह गये हैं और जिनका मांस पूरी तरह गल चुका है। लेकिन इनमें से भी एक अपनी आपको नहीं रोक सका। तुमसे मिलने के लिए वह इतना बेचैन था कि कुछ न पूछो।’’
उसी समय एक छोटा कंकाल कोहनियों से सबको धकेलता आगे निकल आया और आद्रियान की ओर बढ़ने लगा। उसका मांसहीन चेहरा आद्रियान की ओर बड़े चाव से देख रहा था। तेज हरे और लाल रंग की धज्जियां उसक ढांचे से जहां-तहां लटकी थीं जैसे बांस से लअका दी जाती हैं और उसके घुटने से नीचे की हड्डियां घुड़सवारी के ऊंचे जूतों के भीतर इस तरह खटखटा रही थीं, जैसे खरल में मूसली खटखटाती है। ‘‘मुझे पहचाना नहीं, प्रोखोरोव?’’ कंकाल ने कहा, ‘‘गार्द के भूतपूर्व सार्जेंट प्योत्र पेत्रोचिव मुरील्किन को भूल गये, जिसके हाथ तुमने १७९९ में अपना पहला ताबूत बेचा था, वही जिसे सुमने बलूत का बताया था, लेकिन निकला वह चीड़ की खपच्चियों का!’’
यह कहते हुए आद्रियान का आलिंगन करने के लिए कंकाली ने अपनी बांहें फैला दीं। अपनी समूची शक्ति बटोर कर आद्रियान चिल्लाया और कंकाल को उसने पीछे धकेल दिया। प्योत्र पेत्रोविच लड़खड़ा कर फर्श पर गिर पड़ा, बिखरी हुई हड्डियों का ढेर मात्र। मृतकों में विक्षोभ की एक लहर दौड़ गयी। अपने साथी के अपमान का बदला लेने के लिए वे आद्रियान की ओर लपके-चीखते-चिल्लाते, कोसते और धमकियां देते।
अभागे मेजबान के होश गुम थे। चीख-चिल्लाहट ने उसके कान बहरे कर दिये थे और वे उसे कुचल देना चहते थे। उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया और लड़खड़ा कर अब वह भी मृत सार्जेंट की हड्डियों के ढेर पर गिर पड़ा। वह बेसुध हो गया था।
सूरज की किरणें उस बिस्तर पर पड़ रही थीं, जिस पर ताबूतसाज सो रहा था। आखिर उसने आंखे खोलीं और देखा कि नौकरानी समोवार में कोयले दहकाने के लिए फूंक मार ही है। रात की घटनाओं की याद आते ही आद्रियान के शरीर में कंपकंपी-सी दौड़ गयी। त्रूखिना, ब्रिगेडियर और सार्जेंट कुरील्किन के धुंधले चेहरे उसके दिमाग पर छाये हुए थें वह चुपचाप प्रतीक्षा करता रहा कि नौकरानी खुद बातचीत शुरु करेगी और रात की घटनाओं का बाकी हाल उसे बतायेगी।
‘‘मालिक, आज आप कितनी देर तक सोये,’’ सुबह के समय पहनने का चोंगा उसे थमाते हुए आक्सीन्या ने कहा, ‘‘हमारा पड़ोसी दर्जी आपसे मिलने आया था और पुलिस का सिपाही भी एक चक्कर लगा गया है। वह यह कहने आया था कि आज पुलिस इन्स्पेक्टर का जन्मदिन है। लेकिन आप सो रहे थे और हमने जगाना ठीक नहीं समझा।’’
‘‘अच्छा, स्वर्गवासी विधवा त्रूखिना के यहां से भी कोई आया था?’’
‘‘क्यों? क्या त्रूखिना मर गयी, मालिक?’’
‘‘तुम भी बस योंही हो! उसका मातमी-साज-सामान तैयार करने में कल तुम्हीं ने तो मेरा हाथ बंटाया था?’’
‘‘आप पागल तो नहीं हो गये, मालिक?’’ आक्सीन्या ने कहा, ‘‘या कल का नशा अभी तक दिमाग पर छाया हुआ है? कल किसी की मैयत का सामान तैयार नहीं हुआ। आप दिन-भर जर्मन के यहां दावत उड़ाते रहे। रात को नशे में धुत्त लौटे और अपने इसी बिसतर पर गिर पड़े, जिस पर कि आप अभी तक सोये हुए थे। प्रार्थना के लिए गिरजे की घंटी भी बजते-बजत आखिर थक कर चुप हो गयी।’’
‘‘सचमुच?’’ताबूतसाज ने संतोष की सांस लेते हुए कहा। ‘‘और नहीं तो क्या झूठ?’’ नौकरानी ने जवाब दिया। ‘‘तो फिर जलदी से चाय बनाओ और लड़कियों को यहीं बुला लाओ!’’

1 टिप्पणी:

Related Posts with Thumbnails