06 दिसंबर, 2009

खल्लास - कहानी भाग 1 (दिव्या माथुर)

दो उँगलियों को पिस्तौल की तरह साध कर जब नीरा ने 'खल्लास' कहा तो रोज़ी के कान खड़े हो गये। गुंडो के चक्कर में पति हेनरी को तो वह खो ही चुकी थी, उसे लगा कि उसकी बेटी भी कहीं अपने पिता के नक्शे कदम पर न चल निकली हो।

--क्या कहा तुमने? -रोज़ी ने सशंकित हो पूछा।

--खल्लास का मतलब क्या होता है, माँ? -जवाब देने के बजाय नीरा ने माँ से प्रश्न किया।

--अपशकुन, निरा अपशकुन, -उस समय तो रोज़ी बस यही कह पाई थी। नीरा ने एक बार पिता से भी यही प्रश्न पूछा था तो बजाय जवाब देने के, वह उसे अपने साथ पिस्तौल क्लब ले जाने को तत्पर हो गए थे। हेनरी अधिक पढ़ा लिखा नहीं था और न उसे अपनी मातृभाषा के विषय में ही कुछ पता था, किंतु बचपन में किसी साथी से सुना ये शब्द उसकी ज़ुबान पर चढ़ गया था और उसके होंठो पर थिरकता रहता था। शायद वह जानता था कि इस जीवन में तो उसका काम तमाम हो चुका था। जिसे प्यार करता था, वो उसे घास नहीं डाल रही थी और जिसे वह पसंद भी नहीं करता था, वह उसकी पत्नी थी।

--वेयर आर यू टेकिंग हर, आर यू मैड? -भयभीत रोज़ी ने उससे पूछा।

--यू शट अप वूमन, शी मस्ट लर्न टू शूट बिफोर समवन शूट्स हर।

अब तो हेनरी भी नहीं रहा, किसी ने छेड़ा छाड़ी की तो बेटी को कौन बचाएगा। रोज़ी बस अब एक ही रट लगाए थी कि नीरा अपने बचपन के दोस्त पीटर से विवाह रचा ले। गुंडे बदमाशों के शहर, हार्ल्सडन में रहना कोई मज़ाक की बात न थी पर नीरा जानती थी कि घर बसाना एक बात है और आंधी में एक जीर्ण-शीर्ण छप्पर को बचाए रखना दूसरी।

मुहल्ले में रहने वाला पीटर रोज़ी को अच्छा और टिकाऊ लड़का लगता था। वह नीरा का दीवाना भी था। उसे बस यही समझ नहीं आता कि भला नीरा को और क्या चाहिए? उधर नीरा सोचती कि पतला-दुबला मर्गिल्ला-सा पीटर अपनी तो रक्षा कर नहीं सकता, भला उन दोनों की रक्षा क्या करेगा। नीरा के संरक्षण की वजह से ही पीटर स्कूल में बुलींग से बचा हुआ था और जिसकी एवज़ में ही शायद वह माँ-बेटी का बहुत ध्यान रखता था।

रोज़ी ही की तरह, नीरा के पांव भी सदा यथार्थ की धरा पर ही टिके रहते थे और वह जानती थी कि अपने बलबूते पर तो वह अपने मुहल्ले के बाहर कदम भी नहीं रख सकती। उसने अपनी परिस्थिति का अच्छी तरह से जायज़ा ले लिया था। विवाह करके भी वह हार्ल्सडन में तो सुरक्षित नहीं रह सकती। हार्ल्सडन के बाहर की दुनिया उसने कभी देखी ही नहीं और जो देखी वो उसके लिए एक सपना ही थी।

सोलहवां साल लगते ही नीरा एक गुलाब सी खिल गयी थी और कुछ महीनों से नीरा के पीछे भँवरे भी मंडराने लगे थे। रोज़ी के लिए एक नई परेशानी खड़ी हो गई थी। हर जगह तो वह बेटी के साथ जाने से रही। अभी तक तो पड़ौसी माँ बेटी की इज्ज़त करते हैं पर अब जबकि नीरा जवान हो गई है, वे कब तक अपनी खैर मनाएंगी। रोज़ी ने सोचा था कि अब जबकि उसकी बेटी कमाने लायक हो गई है, माँ का हाथ बंटाएगी और वह थोड़ा-सा सुस्ता लेगी। सुपरबाज़ार में बारह से अठारह घंटों की शिफ्ट अब नहीं होती रोज़ी से। हालाँकि रोज़ी ये कहते नहीं थकती थी कि बेटी हो तो नीरा जैसी, जिसका अभी तक कोई ब्वाय फ्रेण्ड तक न बना था, वो भी उस देश में जहाँ पाँच-छ: वर्ष की आयु के बच्चे सैक्स के विषय में सब जानकारी रखते हैं और जहाँ की बच्चियाँ बारह तेरह वर्ष की उम्र में माँ बन जाती हैं। खूबसूरत होने के साथ साथ नीरा पढ़ाई में भी होशियार थी। चार विषयों में उसने ‘ए‘ लेवल किया था। हार्ल्सडन के किसी परिवार से इसकी आशा रखना बहुत कठिन है। रोज़ी के कदम ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। हेनरी होता तो शराब पीकर पूरे मुहल्ले में हल्ला मचाता। ‘ब्लैस हिज़ सोल,’ रोज़ी के मुंह से निकल गया। रोज़ी और नीरा को त्योहारों का बहुत चाव था। वे हेनरी से भी श्री लंका के रीति रिवाज़ो के बार में पूछती रहतीं कि कहीं वह यह न सोचे कि उसकी बीवी और बेटी दुनियाँ भर के त्योहार मनाती फिरती हैं किंतु उससे पूछती भी नहीं कि उसके परिवार में कौन-कौन है, वह श्री लंका से कब और क्यूँकर यहाँ पहुंचा। बिल्कुल अलग किस्म का था हेनरी, जिसका हर त्योहार केवल दारू पीकर ही मनता था। लंदन में जन्मी और पली बढ़ी नीरा का मिज़ाज़ न जाने कैसे गोआ निवासियों का-सा था। संगीत और नृत्य की शौकीन नीरा को अलग अलग धर्मों के प्रति बड़ा रुझान था। जहाँ वह अपनी गुजराती सहेली भावना के साथ दीवाली मनाती और गरबा नाचती, वहीं एक मुसलमान लड़की आएशा के साथ ईद मनाती और सिवैयाँ पकाती।

\हालाँकि बचपन से वह अफ्रीकियों के बीच पली बढ़ी थी, नाज़ुक-सी छुई मुई नीरा को भारी भरकम और काले लोग आक्रमक लगते थे। विशेषत: हार्ल्सडन शहर के ग़रीब लोग, जो कमियों की सौगात के साथ पैदा होते, स्टेट से मिली सुविधाओं के सहारे जीते और मर जाते पर उनके जोश और स्फूर्ति की दाद देने को भी नीरा का मन करता। मन ही मन चाहती कि अ़फ्रीकी लोगों की तरह वह भी कमर और कूल्हे मटका सके। अकेले में अभ्यास भी करती किंतु प्रयत्न करने के बावज़ूद वह सफल नहीं हो पाई थी। स्कूल में विद्यार्थियों के गुट बने हुए थे, किसी एक अच्छे से दिखने वाले अ़फ्रीकी सहपाठी के साथ अलग से मिल बैठना असंभव था।

अ़फ्रीकियों के प्रीतिभोज रात देर से शुरु होते और अल्लसुबह तक जारी रहते बीच बीच में नोंक-झोंक करते हुए कुछ मेहमान सड़क पर निकल आते और कारों की हेडलाइट्स जलाकर खूब हल्ला मचाते जब वे हाथापाई पर उतर आते तो मुहल्ले के दुखी लोग पुलिस को बुला लेते, डरते-डरते कि कहीं उपद्रवियों को पता चल गया कि किसने फोन किया था तो अगले दिन उसकी खैर नहीं। जबकि रोज़ी को ये धूम-धड़ाम बिल्कुल पसंद नहीं थी, विशेषत: जब कि सुबह सुबह उसे काम पर जाना होता, नीरा को इस शोर शराबे में बड़ा मज़ा आता था।

नीरा सबकी नज़र में थी। सड़क पर चलते हर व्यक्ति की नज़र उस पर टिके बगैर नहीं रहती थी। सुपरमाके‍र्ट में मुसलमान लड़कियों को बुर्का पहने देखती तो रोज़ी सोचती कि काश वह भी नीरा को भी बुर्का पहन कर बाहर निकलने को कह सकती किंतु नीरा तो एक से एक नए फैशन के कपड़े पहनना चाहती थी और हर परिधान में वह सुंदर दिखती थी। रोज़ी को लगता कि विवाह हो जाने पर नीरा सुरक्षित हो जाएगी। किंतु उसे शायद ये पता नहीं कि अब समय बदल चुका है। विवाहित होना कोई गारेंटी नहीं है कि एक युवती शांति से रह पाएगी, वो भी हार्ल्सडन में। नीरा को लगता था कि उसने यदि ढीले ढाले पीटर से विवाह कर भी लिया तो गुंडे उसे एक हफ्ता भी जिंदा नहीं रहने देंगे। वैसे भी नीरा अब तक उससे छोटे भाई-सा स्नेह करती आई है।

जिस दिन नीरा को वैस्टमिन्स्टर कालेज में दाखिला मिला, उसी दिन मिला एक प्रेम प्रस्ताव जिसे देख कर मां-बेटी दोनों की ही नींद उड़ गई। दूसरे दर्जे के एक गुंडे, जानी ने नीरा से अकेले में मिलने का न्यौता भेजा था। जानी से न दोस्ती भली, न ही दुश्मनी। माँ-बेटी दोनो ही जानती थीं कि जानी को ‘न’ करना छोटे-मोटे निठल्ले गुंडो को दावत देने के बराबर था। जहाँ ये खबर फैली कि नीरा ने जानी को इंकार कर दिया है, अन्य गुंडे उस पर चील-कऊओं की तरह टूट पड़ेंगे। क्रोध में भरकर जानी स्वयं परोस देगा नीरा को उन सबके आगे।

यूँ तो नीरा के हेनरी का बॉस मार्टिन भी एक गुंडा ही था किंतु वह एक शरीफ़ गुंडा था, जो नीरा को बचपन से पसंद करता था। हेनरी की हत्या के बाद उसने माँ-बेटी का सालों ध्यान रखा बावजूद इसके कि नीरा उसे अपने पिता की आकस्मिक मृत्यु का दोषी ठहराती रही। रोज़ी ने नीरा को कई बार समझाया कि हेनरी की हत्या में मार्टिन का कोई दोष न था, बल्कि वह तो हेनरी की हत्या के बाद महीनों तक किसी से न बोला और न ही चर्च गया। फिर भी यदि ये प्रस्ताव मार्टिन की ओर से आया होता तो नीरा को इसमें कोई आपत्ति न होती। पीटर से विवाह करके तो नीरा उसे भी इस दलदल में खींच लाएगी। उसकी जान बचा भी पाई तो वह उसका दलाल बनकर रह जाएगा। बेटी की बात सुनकर रोज़ी भौंचक-सी रह गईं थी। कितनी दूर की सोच के बैठी थी नीरा। उन्हें विश्वास नहीं हुआ पर ठीक ही तो कह रही थी नीरा कि उसके भाग्य में एक गुंडे से ही विवाह लिखा है तो वह गुंडों के सरदार के साथ क्यों न भाँवर ले ताकि बाकी के गुंडे उनके सामने आँख न उठा सकें। पर मार्टिन को जाकर कौन बताए कि नीरा जवान हो गई है। हाल ही में रोज़ी ने सुपरबाज़ार में काम करना छोड़ एक करोड़पति, जमाइमा फरीद के यहाँ नौकरी कर ली थी, जो लंदन के सबसे महंगे इलाके, मेफेयर में रहती थी। एक हफ्ते के लिये जब फरीद परिवार इटली घूमने गया तो रोज़ी नीरा को जमाइमा का घर दिखाने लाई। उसकी आंखे फटी की फटी रह गईं थीं। उसने ऐसे घर अभी तक केवल फिल्मों में ही देखे थे। उस महल जैसे घर में बारह शयन कक्ष थे और अधिकतर कमरों में शानदार गुसलखाने थे। जिम्ज़ और ज़कूज़ी के अलावा तैरने के दो पूल्स भी थे जिसमें वह जी भर के तैरी थी। उस हफ्ते सारे नौकरों ने खूब मज़ा किया था।

उसी हफ्ते हार्ल्सडन में गुटों से संबंधित दो हत्यायें हुई थीं। पूरा पुलिस महकमा उसी में व्यस्त था। बी बी सी पर लगातार इस सनसनीखेज़ घटना की चर्चा हो रही थी। मार्टिन का इस घटना से कोई संबंध नहीं था, फिर भी उसका घर पुलिस की निगरानी में था। अपने पब को सुरक्षित रखने के अलावा, उसे हिंसा में वैसे भी कोई रुचि नहीं थी। पिछले ही कुछ सालों में न जाने कितने ड्रगडीलिंग गिरोह बने और बिगड़े और न जाने कितनी हत्यायें एक इसी छोटे से शहर में हुईं कि घरों के दाम धूल चाटने लगे। शरीफ़ लोगो को अपने बड़े-बड़े घर सस्ते दामों में बेच कर छोटे-छोटे फ्लैट्स में दूर-दूर जाकर बसना पड़ा।

जमाइमा को जब पता लगा कि रोज़ी हार्ल्सडन में ही कहीं रहती है तो उसने जि़द की कि वह उसे वहाँ ले जाए। रोज़ी ने उसे बहुत समझाया किंतु जमाइमा नहीं मानी। वह तो यह सोच कर रोमांचित हो रही थी कि जो अब तक वह पर्दे पर देखती आई है, अपनी आंखो से देखेगी, ढिशूम-ढिशूम, गरीबी, रंगबिरंगे लोग और चोरी चकारी। एक दोपहर रोज़ी को लेकर अपनी बड़ी-सी बी एम डब्लयु में बैठ कर वह चल दी। रोज़ी और ड्राइवर को चिंता थी कि वहाँ उनकी इतनी महंगी गाड़ी पर न जाने कितनी खरोंचे लगें। चाकू अथवा चाबी से दूसरों की शानदार गाडि़यों को नुकसान पहुंचाने का यहाँ एक रिवाज़-सा है।

ऐसा कुछ नहीं था कि जो जमाइमा को साफ नज़र आता, सिवा इसके कि हार्ल्सडन की मुख्य सड़क के आस-पास का इलाका एक कठोरता लिये हुए था, जहाँ निट्ठल्ले अफ्रीकी लोग टहलते या ठहरे से लगते थे, जैसे कि इस शहर के भाग्य में केवल बदकिस्मती ही बदा हो। मुख्य सड़क पर एक बेखबर काला आदमी झूम-झूम कर नाच रहा था, एक बेहद मोटी स्त्री ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रही थी, ‘वर्ल्डज़ इज़ फुल आव सिन, डूम्स डे इज़ राउनड द कॉर्नर, और वी आर गोइंग टु पैरिश सून इत्यादि।

एकाएक न जाने कहाँ से एक गंदा-सा आदमी, जिसमें से बदबू के भभके उठ रहे थे, उनकी कार की खिड़की में अपना चेहरा घुसा कर बोला, ‘डार्लिंग, गिम्मी सम मनी।' जमाइमा के तो होश ही उड़ गए। रोज़ी ने उस आदमी को डांट कर खिड़की का शीशा ऊपर चढ़ा लिया। भीड़ इतनी ज्यादा थी कि ड्राइवर गाड़ी को हिला तक नहीं पाया। 'यू बिच' कहकर उस आदमी ने कार के शीशे पर थूक दिया।

“हाऊ डू यू लिव हियर, रोज़ी?” घबराई हुई जमाइमा को रोज़ी अपने घर ले आई जहाँ नीरा ने उसकी बड़ी खातिर की। जमाइमा को नीरा इतनी भाई कि उसने उसे अपनी निजी सचिव के रुप में नौकरी दे दी, जिसमें अच्छे वेतन के अलावा, खाने-पीने और रहने की भी व्यवसथा थी। जानी से यहाँ छिपे रहना बड़ा आसान था। नीरा को लगा जैसे कि प्रभु यीशु ने उसकी सुन ली हो।

“बेटी, सोच समझ कर हाँ कहना, तुम्हें अभी कोई अनुभव भी तो नहीं है।" रोज़ी ने कहा तो नीरा ने सोचा कि माँ न जाने क्यों टांग अड़ा रही हैं। न जाने उसे इससे अच्छी नौकरी फिर मिले न मिले।

मेफअर के इस धनाढ़य इलाके में केवल राजपरिवार के लोग और अरबपति ही बसते हैं और यहीं बसी थी जमाइमा, जिसके महलनुमा घर में सब बड़े अदब से पेश आते थे। कोई गाली-गलौज नहीं, शोर शराबा नहीं और न ही कोई गंदगी, हर चीज़ साफ सुथरी, यथास्थान। फरीद की दो बीबियाँ थी, जिनसे उसके पाँच बच्चे थे, तीन बेटे और दो बेटियाँ, जिनकी त्वचा और बाल मखमल से मुलायम थे। नौकर-चाकरों की कोई कमी नहीं थी, तीन ड्राइवर थे, दो खानसामें और चार नौकरानियाँ, जिसमें से दो बच्चों की देखरेख के लिये थीं। रोज़ी तो थी ही बच्चों के होमवर्क आदि की निगरानी के लिये। गोआ में वह एक प्राइमरी स्कूल में अध्यापिका थी। लंदन में बसने के बाद भी उसने एक स्थानीय स्कूल में नौकरी की थी किंतु कुछ एक महीने में ही वह वहाँ से भाग खड़ी हुई थी। पश्चिम संस्कृति से कोई अछूता नहीं था गोआ किंतु वहाँ के बच्चे अध्यापकों की इतनी बेइज्जती नहीं करते थे, यहाँ के बच्चे तो उसे जंगली जानवरों से भी बदत्तर नज़र आए, जिन्हें न बात करने की तमीज़ थी और न ही पढ़ने-लिखने में कोई रुचि। वे इतने उत्पाती और आक्रमक थे कि कभी-कभी तो अध्यापकों को अपनी जान के लाले भी पड़ जाते थे। माँ बहन की गालियाँ सदा उनकी ज़ुबान पर रहती थीं। नाबालिग बच्चे ड्रग्स का शिकार थे और उनसे निबटना रोज़ी के बस के बाहर की बात थी।

रोज़ी की शिक्षा और प्रशिक्षण का पूरा का पूरा लाभ नीरा को मिला। दिन और रात मेहनत करके रोज़ी ने अपनी बेटी को एक ऐसा आदर्श नागरिक बनाया, जिसका उदाहरण न केवल उसके स्कूल में, अपितु आस पड़ोस में भी दिया जाता था। कमल-सी खिलीं थीं माँ-बेटी किंतु थीं तो कीचड़ में ही न, कब तक खड़ी रह पाएंगी यही सोचती। नीरा का काम था जमाइमा के फोनों और पत्रों के जवाब देना, उसकी डायरी संभालना और जहाँ भी जमाइमा जाए, उसके साथ रहना। जमाइमा कई चैरिटीज़ की अभिवावक थी, बड़े-बड़े जलसों की सदारत करती थी। नीरा को तो लगा कि वहाँ काम धाम तो कुछ होता नहीं था, बस खाना-पीना और हा हा ही ही। इन अमीरों को तो बस कुछ शग्ल चाहिए।

जमाइमा का पति फरीद उम्र में उससे बीस-पच्चीस साल बड़ा था। नीरा को बड़ा अजीब लगता कि वही फरीद जो स्वयं दूसरी लड़कियों के साथ मौज मस्ती करता फिरता था, अपनी ही बच्चियों के प्रति इतना कठोर कैसे हो सकता है। बच्चियों के माथे पर से ज़रा कहीं कपड़ा खिसका नहीं कि वह चिल्लाने लगता। हाँ, जमाइमा चाहे किसी पुरुष के साथ उठे-बैठे, उसे कोई एतराज़ नहीं। शायद इसीलिए कि वह पति की रखेल से अधिक नहीं जो उसके दोस्तों का स्वयं मनोरंजन ही नहीं करती, अपितु पति की पसंदीदा युवतियों को उसे उपलब्ध भी कराती है। नीरा को ये समझ नहीं आ रहा था कि कैसे कोई पत्नी अपने ही पति को किसी और स्त्री के हवाले करने को तैयार हो सकती है? जमाइमा में ही क्या कमी है कि फरीद किसी और के पीछे भागता फिरे? रोज़ी जानती थी जमाइमा और फरीद के लफड़े और इसीलिए जब जमाइमा ने नीरा से नौकरी की बात की थी तो रोज़ी को अच्छा नहीं लगा था।

दो दिन की चांदनी में अभी नीरा नहा ही रही थी कि पता लग गया कि इतना वेतन और सुविधाऐं किसी को मुफ्त में ही नहीं मिल जातीं। हर चीज़ की एक कीमत होती है। हार्ल्सडन में रहने वाला विल्सडन या किल्बर्न के ख्वाब तो देख सकता है किंतु मेफअर या मार्बल आर्च में घर बसाने की सोच भी नहीं सकता। उस बड़े से घर में भी फरीद की नज़रों से नीरा का बचना नामुमकिन था। नीरा ने दबी ज़ुबान में जमाइमा से एक-दो बार इस बात जि़क्र किया पर वह टाल गई।

-- कम आन नीरा, एंजौय यौरसैल्फ।

-- बट मैडम...।

-- जस्ट ए लिटल बिट्ट आफ़ फ़न, इट मीन्ज़ नथिंग।

जमाइमा खुद चाहती थी कि नीरा उसके पति का मनोरंजन करे। जमाइमा ने उसे बड़ा फुसलाया कि वह जीवन भर भी कमाएगी तो उसे इतने मूल्यवान उपहार और धन इकट्ठा नहीं कर पाएगी। एक बारगी तो उसका मन हुआ भी था कि कुछ सालो में जब वह अपनी माँ के लिये यहीं मेफेयर में मकान लेने योग्य हो जाएगी तो छोड़ देगी ये धंधा किंतु उसे ये सब बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। तिस पर माँ का चार पहर का पहरा और हिदायत कि यही सब करना था तो पढ़ने-लिखने की क्या आवश्यकता थी। ये स्वर्ग जैसा घर अब नीरा को नर्क से भी बद्तर लगने लगा था। जमाइमा से ये कहकर कि उसे शहर परिषद में नौकरी मिल गई थी, नीरा घर में हाथ पर हाथ धरे बैठी थी।

खल्लास-खल्लास, सामने दीवार पर दिमागी गोलियाँ दाग़ दाग़ कर नीरा अपने मन की भड़ास निकाल रही थी। उसका मन पुरूषों से इतना विरक्त हो चुका था कि उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी रक्षा कैसे करे। एक तरफ फरीद उसके पीछे हाथ धो कर पड़ा था तो दूसरी ओर पीटर शादी के लिए उसे दिक कर रहा था। जानी न सुनने को तैय्यार न था और न जाने कितने अन्य गुंडे इस इंतज़ार में थे कि मौका देखते ही नीरा को लपक लें। जानी का गुंडा जब उसका जवाब माँगने तीसरी बार घर आया तो नीरा के पास कोई रास्ता नहीं बचा था, सिवा इसके कि वह मार्टिन के पास सहायता मांगने जाए।

-- आर यू श्योर नीरा, यू डोंट ईवन लाइक मार्टिन। -माँ ने पूछा ।

-- वाट चौइस डू वी हैव, मम?

-- एंड डोंट डेयर सजैस्ट पीटर अगेन।

-- मार्टिन इज़ नौट बैड बट वुड ही मैरी यू? इट विल बी बैटर इफ़ आई टाक टू हिम।

-- नो वे, आई कैन हैंडल हिम, मम, यू नीड नौट वरि।

अच्छे से तैयार होकर नीरा सुबह-सुबह बेन्ज़ डेन में जा पहुंची। पब में घुसते ही नीरा की नज़र एंजला पर नज़र पड़ी जो बार साफ कर रही थी। चूडि़यों से भी बड़ी-बड़ी चांदी की बालियाँ पहने, बालों में नवयुवतियों जैसा बैंड लगाए और चेहरे पर सदाबहार मुस्कान लिये, वह एक अंग्रेज़ी धुन गुनगुना रही थी। नीरा को देखकर उसका चेहरा खिला, बुझा और फिर खिल उठा।

-- ओराइट? नीरा जैसी लड़की यहाँ क्या कर रही है? -वह परेशान थी।

-- आइ एम आल राइट, थैंक यू। कैन आइ टॉक विद मार्टिन?

--मार्टिन -मज़ाकिया तौर पर नीरा को आँख मारते हुए एंजला ने इतनी ज़ोर से गुहार लगाई कि मार्टिन और उसके सभी साथी भागते हुए बाहर आ पहुँचे। मानो किसी ने उनके पब पर हमला बोल दिया हो। उनके परेशान चेहरे देख कर एंजला हो-हो कर हंसने लगी। मार्टिन नीरा को देख कर सकपका गया।

मार्टिन नीरा की ओर कुर्सी बढ़ाता हुआ बोला-- ओराइट?

-- यैस, थैंक यू, कैन आई टॉक विद यू इन प्राइवेट?

एक बार लगा था कि मार्टिन कह देगा कि जो उसे कहना है, वह सबके सामने कहे। उसके साथियों के चेहरे पर भी कुछ ऐसे ही भाव थे किंतु अगवानी करता मार्टिन नीरा को अपने निजी दफ्तर में ले गया था। नीरा के कमसिन चेहरे को वह अपलक निहार रहा था। सत्तरह साल की युवती और इतनी तेजस्वनी। असल में वह नीरा से इस बीच मिला ही नहीं था। नवयौवना नीरा भी पूरी तैयारी से आई थी। सीधी-सादी किंतु स्मार्ट वेशभूषा में वह झक-झक कर रही थी। नीरा ये देख कर प्रसन्न थी कि मार्टिन भी उसके रुप से अछूता नहीं रह पाया था। बाज़ी जीती-जिताई थी पर नीरा ने खेल जारी रखा कि वह ही मार्टिन की पनाह में आई थी।

टोनी के तीनों पत्रों को मेज़ पर रखते हुए नीरा सीधे-सीधे अपनी बात पर आ गई थी।

-- क्षमा चाहती हूँ किंतु मेरे लिए अब और कोई रास्ता नहीं बचा है सिवा इसके कि मैं आपके गिरोह में शामिल हो जाऊँ।" अच्छी अंग्रेज़ी में नीरा बोली।1

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