10 जुलाई, 2009

कुत्ता और चीता (बाल-कहानी)

एक था कुत्ता। एक था चीता। दोनों में दोस्ती हो गई। कुत्ते का अपना घर नहीं था, इसलिए वह चीते के घर में रहता था। कुत्ता चीते के घर रहता था, इसलिए चीता उससे काम करवाता था और उसे नौकर की तरह रखता था, चौमासा आया। चीते ने कहा, "कुत्ते भैया! आओ हम बांबिया देखने चलें। देखें कि इस बार बांबियों में कितनी और कैसी-कैसी चीटियां उमड़ी हैं।"

दोनों बांबियों के पास पहुंचे। देखा कि वहां तो अनगिनत चीटियों और कीड़ों-मकोड़ों की कतारें लगी थीं। दोनों ने अंजली भर-भरकर चीटियां और कीड़े-मकोड़े इकट्ठा कर लिए और उनको घर ले आए। चीते की घरवाली ने इनकी बढ़िया मिठाई बनाई और सबने जी भर खाई। बची हुई मिठाई सुखा ली गई। खा-पीकर दोनों दोस्त आराम करने बैठे। चीते ने कहा, "कुत्ते भैया! यह सुखाई हुई मिठाई मुझे अपनी ससुराल पहुंचानी है। तुम इसकी चार छोटी-छोटी पोटलियां तैयार कर लो।"

कुत्ते ने चार छोटी-छोटी पोटलियां बांध लीं। ठाठ-बाट के साथ चीता तैयार हो गया। हाथ में सारंगी ले ली और वह गाता-बजाता ससुराल चल पड़ा। कुत्ते से कहा, "तुम ये पोटलियां उठा लो।"

आगे-आगे चीता और पीछे-पीछे कुत्ता। रास्ते में जो भी मिलता, सो पूछता, "चीते भैया, कहां जा रहे हो? कुत्ते भैया, कहां जा रहे हो?"

चीता कहता, "मैं अपनी ससुराल जा रहा हूं।"

कोई कहता, "चीते भैया! ज़रा अपनी यह सारंगी तो बजाओ।" और चीता सारंगी बजाकर गाने लगता:

कुत्ते भैया के सिर पर बहू की सिरनी।

कुत्ते भैया के सिर पर बहू की सिरनी।

चीता तो मस्त होकर गाता, और इधर कुत्ते का जी जलता रहता। आखिर कुत्ते भैया को गुस्सा आ गया। उसने कहा, "चीते भैया! मैं यहां थोड़ी देर के लिए रुकता हूं। आप आगे चलिए। मैं अभी आया।" चीते भैया आगे बढ़ गए।

कुत्ते ने पोटलियां खोलीं ओर सारी मिठाई खा डाली। फिर घास भरकर पोटलियां बना लीं और कदम बढ़ाते हुए चीते भैया के पास पहुंचकर उसके साथ-साथ चलने लगा। कुछ देरन के बाद कुत्ते ने कहा, "चीते भैया! अपनी यह सारंगी मुझे दे दो? मन होता है कि मैं भी थोड़ा-सा गा लूं और बजा लूं।" कुत्ते ने सारंगी हाथ में लेकर गाना शुरू किया:

अपने ससुर के लिए,

मैं घास-पान लाया हूं।

अपने ससुर के लिए, मैं घास-पान लाया हूं।

चीता बोला, "वाह कुत्ते भैया! आपका गाना तो बहुत बढ़िया रहा!"

कुत्ते ने कहा, "भैया, यह तो तुम्हारी ही मेहरबानी है कि मैं इतना अच्छा गा-बजा लेता हूं। मैंने यह सब तुम्हीं से तो सीखा है न?"

चीता गाते-बजाते अपनी ससुराल पहुंच। ससुराल वालों ने सबके कुशल समाचार पूछे। चीते ने भी अपनी तरफ से सबकी राज़ी-खुशी पूछी। चीता तो जमाई बनकर आया था। उसका अपना अलग ठाठ था। वहां कुत्ते को भला कौन पूछता? सास ने जमाई को बड़े प्रेम के साथ हुक्का दिया। चीता बैठा-बैठा हुक्का गुड़गुड़ाने लगा। कुत्ते को किसी ने पूछा तक नहीं। कुछ देर बाद सबकी नजर बचाकर कुत्ता बाहर निकल आया और दौड़ते हुए अपने घर की तरफ चल पड़ा।

हुक्का गुड़गुड़ाते हुए जमाई ने हंसते-हंसते कहा, "आप सबके लिए मैं यह मिठाई लाया हूं। बहुत बढ़िया है। सास ने खुशी-खुशी पोटली खोली। ससुर भी आंख गड़ाकर देखते रहे। जब पोटली खुली, तो देखा कि उसमें मिठाई के बदले घास भरी है।

घास देखकर चीता आग-बबूला हो उठा और कुत्ते को खोजने लगा। लेकिन कुत्ता तो बहुत पहले ही नौ-दो ग्यारह हो चुका था। चीते ने बाहर निकलकर एक सयाने आदमी से पूछा, "बाबा, कुत्ते को कैसे पकड़ा जाय?"

उसने कहा, "ढोल बजाकर नाचना शुरू करो, तो नाच देखने के लिए कुत्ता भी आ जायगा।" चीते ने ढोल बजाकर नाच शुरू किया। गाय, भैंस, भेड़ सारे जानवर इकट्ठा हो गए। लेकिन कुत्ते के मन में तो डर था। उसने सोचा-अगर मैं गया, तो चीता मुझे जिन्दा नहीं छोड़ेगा।

दूसरा दिन हुआ। भेड़ ने कुत्ते से नाच की बात कही। कुत्ते के मन में नाच देखने की इच्छा बढ़ गयी। लेकिन नाच देखे कैसे ? भेड़ ने कहा, "मैं तुमको अपनी पूंछ में छिपाकर ले चलूंगी। चीता तुमको कैसे देख सकेगा?" तीसरे दिन फिर ढोल बजने लगे और नाच शुरू हुआ। भेड़ की पूंछ में छिपकर कुत्ता नाच देखने चला। चीता तो कुत्ते को चारों ओर खोजता ही रहता था, पर कुत्ता कहीं दिखायी नहीं पड़ता था। इससे चीता निराश हो गया।

अगली रात को फिर ढोल बजवाए और नाच शुरू करवाया। भेड़ की पूंछ में छिपकर कुत्ता फिर नाच देखने पहुंचा। ढोल जोर-जोर से बजने लगा। नाच का जोर भी खूब बढ़ गया। सब जानवर अपनी पूंछें हिला-हिलाकर नाचने लगे।

भेड़ की पूंछ में तो कुत्ता छिपा था। भेड़ भला कैसे नाचती, और कैसे आपनी पूंछ हिलाती? लेकिन नाच का जोर इतना बढ़ा और ढोल भी इतने जोर-जोर से बजने लगा कि भेड़ से रहा नहीं गया। वह भी अपनी पूंछ हिला-हिलाकर नाचने लगी। कुत्ता पूंछ में से निकलकर बाहर आ गिरा। कुत्ते ने सोचा, अब मेरे! वह फौरन ही उठकर भागा और एक आदमी की आड़ में छिप गया। चीते ने गुस्से में भेड़ को मार डाला और फिर वह कुत्ते को मारने जो दौड़ा तो आदमी ने अपना लाठी तान ली।

चीते ने कहा, "अच्छी बात है, कुत्ते भैया! कभी कोई मौक़ा मिलने दो। किसी दिन तुमको अकेला देखूंगा, तो मारकर खा ही जाऊंगा।"

उस दिन से कुत्ते और चीते के बीच दुश्मनी चली आ रही है। कुत्ता चीते को देखकर भाग खड़ा होता है। कुत्तों ने जंगल में रहना छोड़ दिया है, और तबसे लेकर अब तक वह आदमी के ही साथ रहने लगा है।

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