17 फ़रवरी, 2010

चंद्रकांता संतति - भाग 9

बूढ़े की बात सुन रामनारायण और चुन्नी लाल चुप हो गए, बल्कि शरमाकर सिर नीचा कर लिया। बूढ़ा दारोगा वहां से रवाना हुआ और शिवदत्त के पास पहुंचकर इन दोनों ऐयारों के गिरफ्तार करने का हाल कहा। महाराज ने खुश होकर बाकर अली को इनाम दिया और खुशी-खुशी खुद रामनारायण और चुन्नी लाल को देखने आए।
बद्रीनाथ, पन्नालाल और ज्योतिषी जी को भी मालूम हो गया कि हमारे साथियों में से दो ऐयार पकड़े गए। अब तो एक की जगह तीन आदमियों के छुड़ाने की फिक्र करनी पड़ी।
कुछ रात गए ये तीनों ऐयार घूम-फिरकर शहर के बाहर की तरफ जा रहे थे कि पीछे से एक आदमी काले कपड़े से अपना तमाम बदन छिपाए लपकता हुआ उनके पास आया और लपेटा हुआ एक छोटा-सा कागज उनके सामने फेंक और अपने साथ आने के लिए हाथ से इशारा करके तेजी से आगे बढ़ा।
बद्रीनाथ ने उस पुर्जे को उठाकर सड़क के किनारे एक बनिए की दुकान पर जलते हुए चिराग की रोशनी में पढ़ा, सिर्फ इतना ही लिका था- 'भैरो सिंह'। बद्रीनाथ समझ गए कि भैरो सिंह किसी तरकीब से निकल भागा है और यही जा रहा है। बद्रीनाथ ने भैरो सिंह के हाथ की लिखावट भी पहचानी।
भैरो सिंह पुर्जा फेंककर इन तीनों को हाथ के इशारे से बुला गया था और 10-12 कदम आगे बढ़कर अब इन लोगों के आने की राह देख रहा था।
बद्रीनाथ वगैरह खुश होकर आगे बढ़े और उस जगह पहुंचे जहां भैरो सिंह काले कपड़े से बदन को छिपाए सड़क के किनारे आड़ देखकर खड़ा था। बातचीत करने का मौका न था, आगे-आगे भैरो सिंह और पीछे-पीछे बद्रीनाथ, पन्नालाल और ज्योतिषी जी तेजी से कदम बढ़ाते शहर के बाहर हो गए।
रात अंधेरी थी। मैदान में जाकर भैरो सिंह ने काला कपड़ा उतार दिया। इन तीनों ने चंद्रमा की रोशनी में भैरो सिंह को पहचाना- खुश होकर बारी-बारी से तीनों ने उसे गले लगाया और तब एक पत्थर की चट्टान पर बैठकर बातचीत करने लगे...
बद्रीनाथ- भैरो सिंह, इस वक्त तुम्हें देखकर तबियत बहुत ही खुश हुई!
भैरो सिंह- मैं तो किसी तरह छूट आया, मगर राम नारायण और चुन्नीलाल बेढब जा फंसे हैं।
ज्योतिषी जी- उन दोनों ने भी क्या धोखा ही खाया।
भैरो सिंह- मैं उनके छुड़ाने की भी फिक्र कर रहा हूं।
पन्नालाल- वह क्या?
भैरो सिंह- सो सब कहने-सुनने का मौका तो रातभर है, मगर इस समय मुझे भूख बड़े जोर से लगी है, कुछ हो तो खिलाओ।
बद्रीनाथ- दो-चार पेड़े हैं, जी चाहे तो खा लो।
भैरो सिंह- इन दो-चार पेड़ों से क्या होगा? खैर पानी का तो बंदोबस्त होना चाहिए।
बद्रीनाथ- फिर क्या करना चाहिए?
भैरो सिंह-(हाथ से इशारा करके), यह देखो शहर के किनारे जो चिराग जल रहा है अभी देखते आए हैं कि वह हलवाई की दुकान है और वह ताजी पूरियां बना रहा है, बल्कि पानी भी उसी हलवाई से मिल जाएगा।
पन्ना लाल- अच्छा मैं जाता हूं।
भैरो सिंह- हम लोग भी साथ चलते हैं, सभी का इकट्ठा ही रहना ठीक है, कहीं ऐसा न हो कि आप फंस जाएं और हम लोग राह ही देखते रहें।
पन्ना लाल- फंसना क्या खिलवाड़ हो गया!

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