23 फ़रवरी, 2010

चंद्रकांता संतति - भाग 14

आनंद सिंह- चुनार यहां से कितनी दूर और किस तरफ है?
सिपाही- चुनार यहां से बीस कोस है। चलिए, मैं आपके साथ चलता हूं, इन घोड़ों में इतनी ताकत है कि सवेरा होते-होते हम लोगों को चुनार पहुंचा दे। आप घर चलिए, इंद्रजीत सिंह के लिए कुछ फिक्र न कीजिए, उनका पता भी बहुत जल्द लग जाएगा, आपके ऐयार लोग उनकी खोज में निकले हुए हैं।
आनंद सिंह- ये घोड़े कहां से लाए?
सिपाही- कहीं से चुरा लाए, इसका कौन ठिकाना है?
आनंद सिंह- खैर यह तो बताओ तुम कौन हो और तुम्हारा नाम क्या है?
सिपाही- यह मैं नहीं बता सकता और न आपको इसके बारे में कुछ पूछना मुनासिब ही है।
आनंद सिंह- खैर अगर कहने में कुछ हर्ज है तो...
आनंद सिंह अपना पूरा मतलब कहने भी ने पाए थे कि कोई चौंकाने वाली चीज इन्हें नजर आई। स्याह कपड़ा पहने हुए किसी को अपनी तरफ आते देखा। सिपाही और आनंद सिंह दोनों एक पेड़ की आढ़ में गए और वह आदमी इनके पास ही से कुछ बड़बड़ाता हुआ निकल गया जिसे यह गुमान भी न था कि इस जगह पर कोई छिपा हुआ मुझे देख रहा है।
उसकी बड़बड़ाहट इन दोनों ने सुनी, वह कहता जाता था- 'अब मेरा कलेजा ठंडा हुआ, अब मैं घर जाकर बेशक सुख की नींद सोऊंगी और उसकी लाश को गीदड़ और कौवे कल दिन भर में खा जाएंगे जिसने मुझे औरत जानकर दबाना चाहा था और यह न समझा था कि इस और का दिल हजार मर्दों से भी बढ़कर है!'
आनंद सिंह और सिपाही दोनों उसकी तरफ टकटकी लगाए देखते रहे जिसकी बकवास से मालूम हो गया ता कि कोई और है, वह देखते-देखते नजरों से गायब हो गई।
सिपाही- बेशक इसने कोई खून किया है।
आनंद सिंह- और वह भी इसी जगह कहीं पास में। खोजने से जरूर पता लगेगा।
दोनों आदमी इधर-उधर ढूंढ़ने लगे, बहुत तकलीफ करने की नौबत न आई और दस ही कदम पर तड़पती हुई लाश पर इन दोनों की नजर पड़ी।
सिपाही ने अपने बगल से एक थैली निकाली और चकमक पत्थर से आग झाड़ मोमबत्ती जला उस तड़पती हुई लाश को देखा। मालूम हुआ कि किसी कटार या खंजर इसके कलेजे के पार कर दिया है, खून बराबर बह रहा है, जख्मी पैर पटकता और बोलने की कोशिश करता है, मगर बोला नहीं जाता।
सिपाही ने अपनी थैली से एक छोटी बोतल निकाली जिसमें किसी तरह का अर्क भरा हुआ था। इसमें से थोड़ा अर्क जख्मी के मुंह में डाला। गले के नीचे उतरते ही उसमें कुछ बोलने की ताकत आई और बहुत ही धीमी आवाज से उसने नीचे लिखे हुए कई टूटे-फूटे शब्द अपने मुंह से निकालने के साथ ही दम तोड़ दिया-
'अ...सोस, यह खूबसूरत पिशाची... तेज सिंह... की... जान मेरी तरह उसके फंदे में हाय! ... इंद्रजीत सिंह...!'
उस बेचारे मरने वाले के मुंह से निकले हुए ये दो-चार शब्द बेजोड़ क्यों न हों, मगर इन दोनों सुनने वालों के दिलों को तड़पा देने के लिए काफी थे। आनंद सिंह से ज्यादा उस सिपाही को बेचैनी हुई जो अपने में बहुत कुछ कर गुजरने की कुदरत रखता था और जानता था कि इस वक्त अगर कोई हाथ कुंअर इंद्रजीत सिंह और तेज सिंह की मदद को बढ़ सकता है तो वह सिर्फ मेरी ही हाथ है।
सिपाही- कुमार, अब आप जाइए। इन टूटी-फूटी बेजोड़, मगर मतलब से भरी बातों को जो इस मरने वाले के मुंह से अनायास निकल पड़ी है सुनकर निश्चय हो गया कि आपके बड़े भाई और ऐयारों के सिरताज तेज सिंह किसी ऐसी आफत में, जो बहुत जल्द तबाह कर देने की कुदरत रखती है, फंस गए हैं। ऐसी हालत में मैं जो बहुत-कुछ कर गुजरने का हौसला रखता हूं किसी तरह नहीं अटक सकता और मेरा मतलब तभी सिद्ध होगा जब उस औरत को खोज निकालूंगा और जो अभी यह आफत कर गई और आगे कई तरह के फसाद करने वाली है।
नंद सिंह- तुम्हारा कहना सही है, मगर क्या तुम कह सकते हो कि ऐसी खबर पाकर मैं चुपचाप घर चले जाना पसंद करूंगा और जान से ज्यादे प्यारों की मदद से जी चुराऊंगा?
सिपाही- (कुछ सोचकर) अच्छा, तो ज्यादे बात करने का मौका नहीं है, चलिए। हां, सुनिए तो आपके पास कोई हथियार तो है नहीं, काम पड़ने पर क्या कर सकेंगे? मेरे पास एक खंजर और एक नीमचा है, दोनों में जो चाहें एक आप ले लें।
आनंद सिंह- बस नीमचा मेरे हवाले कीजिए और चलिए!
आनंद सिंह ने नीमचा अपनी कमर में लगाया और सिपाही के साथ पैदल ही उस तरफ बढ़ चले जिधर वह खूनी औरत बकती हुई चली गई थी।
ये दोनों ठीक उसी पगडंडी के रास्ते को पकड़े हुए थे जिस पर वह औरत गई थी। थोड़ी-थोड़ी दूर पर सांस रोककर इधर-उधऱ की आहट लेते, जब कुछ मालूम न होता तो फिर तेजी के साथ बढ़ जाते।
कोस-भर के बाद पहाड़ी उतरने की नौबत पहुंची, वहां ये दोनों फिर रुके और चारों तरफ देखने लगे। छोटी सी घंटी बजने की आवाज आई। घंटी किसी खोह या गड्ढ़े के अंदर बजाई गई थी जो वहां से बहुत करीब थी जहां ये दोनों बहादुर खड़े हो इधर-उधर देख रहे थे।
ये दोनों उसी तरफ मुड़े जिधर से घंटी की आवाज आई थी। फिर आवाज आई, अब तो ये दोनों उस खोह के मुंह पर पहुंच गए जो पहाड़ी की कुछ ढाल उतरकर पगडंडी के रास्ते से बाईं तरफ हटकर थी और जिसके अंदर से घंटी की आवाज आई थी। बेधड़क दोनों आदमी खोह के अंदर घुस गए।
अब फिर एक बार घंटी बजने की आवाज आई और साथ ही एक रोशनी भी चमकती हुई दिखाई दी जिसकी वजह से उस खोह का रास्ता साफ मालूम होने लगा, बल्कि उन दोनों ने देखा कि कुछ दूर आगे एक औरत खड़ी है जो रोशनी होते ही बाईं तरफ हटकर किसी दूसरे गड्ढ़े में उतर गई जिसका रास्ता बहुत छोटा, बल्कि एक ही आदमी के जाने लायक था। इन दोनों को विश्वास हो गया कि यह वही औरत है जिसकी खोज में हम लोग इधर आए हैं।

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