20 मार्च, 2010

नियति

राजा को गुप्तचरों ने सूचना दी कि पड़ोसी राज्य की सेनाएं उस राज्य पर धावा बोलने के लिए निकल चुकी हैं। उसने सेनापति को उन्हें राज्य की सीमा पर रोक देने का आदेश दिया। सेनापति अपनी सफलता को लेकर आश्वस्त था, क्योंकि उनके पास कहीं ज्यादा बड़ी सेना थी। लेकिन उसके सैनिकों को अपनी जीत पर संदेह था।

सेनापति ने कई तरह से समझाया, दोनों सेनाओं की तुलना के ढेर सारे तथ्य बताए, पर सैनिकों के मन में अकारण बैठ गया था कि हमारी हार ही होनी है। बावजूद इसके सेनापति सेना लेकर निकल पड़ा, पड़ोसी सेना को सीमा पर ही रोक देने के लिए। रास्ते में एक मंदिर था। परंपरा के अनुसार वे वहां पूजा के लिए रुके। सैनिकों ने अपनी जीत की कामना की, पर उन्हें अब भी जीत का भरोसा नहीं था। तभी सेनापति ने अपने सैनिकों को संबोधित करना शुरू किया। उसने कहा, ‘हम यह सिक्का उछालकर देखेंगे कि नियति में क्या लिखा है। अगर चित आया, तो हमारी जीत होगी और पट आया, तो हार।’ सैनिक उत्सुकता से देखने लगे। सेनापति ने सिक्का उछाला और यह चित था। सैनिकों में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी। कहना न होगा कि उन्होंने पड़ोसी राज्य की सेना को न सिर्फ़ अपनी सीमा पर रोक दिया, बल्कि काफ़ी दूर तक खदेड़ भी आए। बाद में एक युवा सैनिक ने सेनापति से कहा, ‘सचमुच, जो नियति में लिखा होता है, वही होता है।’ सेनापति ने जवाब देने की बजाय उसे वह सिक्का दिखा दिया। उस सिक्के के दोनों तरफ़ चित वाला ही निशान था। फिर क्या था, सैनिक वहीं अपना माथा पकड़कर बैठ गया।

सबक : भाग्य में जो लिखा है, वह तो होगा ही, लेकिन भाग्य में क्या लिखा, यह नियति रचने वाले, यानी ईश्वर के अलावा और कोई भी सही-सही नहीं बता सकता।

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