17 नवंबर, 2009

गांधीजी का अनुशासन - प्रेरक प्रसंग

महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम में प्रत्येक कार्य का समय नियत था और नियम-कायदों का सख्ती से पालन होता था। आश्रम के प्रत्येक कर्मचारी और वहां रहने व आने वाले सभी लोगों को नियमानुसार ही कार्य करने की हिदायत दी जाती थी। साबरमती आश्रम का एक नियम यह था कि वहां भोजनकाल में दो बार घंटी बजाई जाती थी। उस घंटी की आवाज सुनकर आश्रम में रहने वाले सभी लोग भोजन करने आ जाते थे।



जो लोग दूसरी बार घंटी बजने पर भी नहीं पहुंच पाते थे, उन्हें दूसरी पंक्ति लगने तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। एक दिन की बात है कि भोजन की घंटी दो बार बज गई और गांधीजी समय पर उपस्थित नहीं हो सके। वस्तुत: वे कुछ आवश्यक लेखन कार्य कर रहे थे जिसे बीच में छोड़ना संभव नहीं था। जब वे आए, तब तक भोजनालय बंद हो गया था।



फलस्वरूप उन्हें दूसरी पंक्ति लगने तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। वे अत्यंत सहजता से लाइन में लग गए। तभी किसी ने उनसे कहा- बापू! आप लाइन में क्यों लग रहे हैं? आपके लिए कोई नियम नहीं है। आप भोजन ग्रहण कीजिए। तब गांधीजी बोले- नहीं, नियम सभी के लिए एक जैसा होना चाहिए।



जो नियम का पालन न करे, उसे दंड भी भोगना चाहिए। यह घटना नियम पालन के साथ ही उसमें समानता अपनाने पर बल देती है। वस्तुत: प्रत्येक संस्था कुछ तय नियमों के अनुसार संचालित होती है। कनिष्ठ कर्मचारियों के साथ वरिष्ठ अधिकारियों के लिए भी नियम पालन की अनिवार्यता से ही संस्था की सुव्यवस्था व उन्नति निर्धारित होती है।

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