05 मार्च, 2010

ज़िम्मेदारी - जेन कथा

जेन गुरु रयोकान को उनकी बहन ने कोई जरूरी बात करने के लिए अपने घर आने का निमंत्रण दिया। वहां पहुंचने पर रयोकान की बहन ने उनसे कहा, ‘अपने भांजे को कुछ समझाओ। वह कोई काम नहीं करता। अपने पिता के धन को वह मौज-मस्ती में उड़ा देगा। केवल आप ही उसे राह पर ला सकते हो।’



रयोकान अपने भांजे से मिले। वह भी अपने मामा से मिलकर बहुत प्रसन्न था। रयोकान के जेन मार्ग अपनाने से पहले दोनों ने बहुत समय साथ में गुजरा था। भांजा यह समझ गया था कि रयोकान उसके पास क्यों आए थे। उसे यह आशंका थी कि रयोकान उसकी आदतों के कारण उसे अच्छी डांट पिलाएंगे।



लेकिन रयोकान ने उसे कुछ भी न कहा। अगली सुबह जब उनके वापस जाने का समय हो गया, तब वह अपने भांजे से बोले, ‘क्या तुम मेरी जूतियों के तसमे बांधने में मेरी मदद करोगे? मुझसे अब झुका नहीं जाता और मेरे हाथ कांपने लगे हैं।’



भांजे ने बहुत ख़ुशी-ख़ुशी रयोकान की जूतियों के तसमे बांध दिए। ‘शुक्रिया’ रयोकान ने कहा- ‘दिन प्रतिदिन आदमी बूढ़ा और कमजोर होता जाता है। तुम्हें याद है, मैं कभी कितना बलशाली और कठोर हुआ करता था?’



‘हां’- भांजे ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘अब आप बहुत बदल गए हैं।’ भांजे के भीतर कुछ जाग रहा था। उसे अनायास यह लगने लगा कि उसके रिश्तेदार, उसकी मां और उसके सभी शुभचिंतक लोग अब बुजुर्ग हो गए थे। उन सभी ने उसकी बहुत देखभाल की थी और अब उनकी देखभाल करने की जिम्मेदारी उसकी थी। उस दिन से उसने सारी बुरी आदतें छोड़ दीं और सबके साथ-साथ अपने भले के लिए काम करने लगा।

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