20 मार्च, 2010

अस्मत - डॉ. बशीर बद्र


सर से चादर, बदन से क़बा ले गई
जिंदगी हम फ़क़ीरों से क्या ले गई

मेरी मुट्ठी में सूखे हुए फूल हैं,
ख़ुशबुओं को उड़ाकर हवा ले गई

मैं समंदर के सीने में चट्ठान था
रात इक मौज आई बहा ले गई

चांद ने रात मुझको जगाकर कहा
एक लड़की तुम्हारा पता ले गई

मेरी शोहरत सियासत से महफ़ूज है
ये तवायफ़ भी अस्मत बचा ले गई


मायने:
कबा= अंगरखा, गाउन/मौज= तरंग, लहर / सियासत= छल, फ़रेब/ महफ़ूज=सुरक्षित



डॉ. बशीर बद्र को उर्दू का वह शायर माना जाता है, जिसने कामयाबी की बुलंदियां हासिल कर लोगों के दिलों की धड़कनों को अपनी शायरी में उतारा है। वे मुहब्बत के शायर हैं। उन्होंने उर्दू ग़ज़ल को एक नया लहजा दिया। यही वजह है कि उन्होंने श्रोता और पाठकों के दिलों में भी अपनी ख़ास जगह बनाई।



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