04 मार्च, 2010

हमारा क्या दोष?

एक नौजवान जोड़ा किसी हिल स्टेशन में हनीमून के लिए गया। होटल में खाने के रेट वगैरह तय हो गए। संयोग कुछ ऐसा हुआ कि वे रोज बाहर घूमने जाते, तो रात का खाना बाहर ही खाकर आते तथा इस दौरान वे होटल वालों को मना भी नहीं कर पाते कि वे रात का खाना नहीं खाएंगे।
होटल से चलते समय जब बिल मिला, तो उसमें डिनर के पैसे जुड़े थे। पति बोला- ‘भई डिनर तो हमने कभी लिया नहीं।



यह डिनर के पैसे कैसे जोड़ दिए?’
मालिक बोला- ‘आपने तो मना भी नहीं किया। हम रोज बनाते रहे कि हमारे ग्राहक भूखे न रहें। आपके लिए खाना तो तैयार था। आप न खाएं, तो हमारा क्या दोष?’ पैसे तो डिनर के बिल में जुड़ेंगे।
आदमी ने पैसे दे दिए। सूटकेस उठाकर बाहर की तरफ़ चलने लगा।



अचानक उसने होटल मालिक की गरदन पकड़ ली।
बोला, ‘तुमने मेरी बीवी को छेड़ा कैसे? पांच हज़ार रुपए दो तुरंत, नहीं तो पुलिस को रिपोर्ट करता हूं।’
होटल वाला बोला, ‘मैंने कहां छेड़ा? मैंने तो उसकी तरफ़ आंख उठाकर भी नहीं देखा।’ पति गरदन दबाते हुए बोला- ‘तुमसे उसे छेड़ा नहीं तो इसमें उसकी या ग़लती? वो तो तैयार थी!’

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