आज मैंने क़रीब दो पन्ने पढ़े
एक रहस्यवादी कवि की किताब से
और मैं उस व्यक्ति की तरह हंसा जो बस रोता रहा हो
बीमार दार्शनिक होते हैं रहस्यवादी कवि
और दार्शनिक पागल होते हैं
क्योंकि रहस्यवादी कवि कहते हैं कि
फूलों को अहसास होता है
वे कहते हैं कि पत्थरों में आत्मा होती है
और नदियों को चांदनी में उद्दाम प्रसन्नता होती है
लेकिन फूलों को अहसास होने लगे तो वे फूल नहीं रह जाएंगे-
वे लोग हो जाएंगे
और अगर पत्थरों के पास आत्मा होती
तो वे जीवित लोग होते, पत्थर नहीं
और अगर नदियों को होती उद्दाम प्रसन्नता चांदनी में
तो वे बीमार लोगों जैसी होतीं
आप फूलों, पत्थरों, नदियों की
भावनाओं की बात तभी कर सकते हैं
जब आप उन्हें नहीं जानते
फूलों, पत्थरों और नदियों की आत्माओं की बात करना
अपने बारे में बात करना है- अपने संदेहों के बारे में
शुक्र है ख़ुदा का पत्थर बस पत्थर है
और नदियां बस नदियां
और कुछ नहीं
फूल बस फूल
जहां तक मेरा सवाल है
मैं लिखता हूं अपनी कविताओं का गद्य
और मैं संतुष्ट हूं
क्योंकि मैं जानता हूं
कि मैं प्रकृति को बाहर से समझता हूं
मैं उसे भीतर से नहीं समझता
क्योंकि पृथ्वी के भीतर कुछ नहीं होता
वरना वह प्रकृति ही नहीं रह जाएगी
(पुर्तगाल के कवि पेसोआ (1888-1935) बीसवीं सदी के सबसे चर्चित कवियों में से एक। ये एक साथ कई नामों से कविताएं लिखा करते थे।)
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