एक बहुत बड़ा जहाज एक बार ख़राब हो गया। जहाज का इंजन स्टार्ट ही नहीं हो रहा था। तमाम बड़े-बड़े इंजीनियरों ने सुधारने की कोशिश की, लेकिन कोई लाभ न हुआ। इंजन को सुधारना तो दूर, कोई उसकी ख़राबी भी नहीं पकड़ पा रहा था। इसी बीच किसी ने मालिकों को एक बुजुर्ग का नाम सुझाया। वह इंजीनियर नहीं था। उसके पास कोई डिग्री-डिप्लोमा भी नहीं था। पर वह बहुत अनुभवी था।
वह अपने समय का जाना-माना मैकेनिक था और इस क्षेत्र में लंबे समय तक काम करने के बाद अब नाती-पोतों के साथ समय बिता रहा था। उसे बुलाया गया। जब वह आया, तो उसकी दशा देखकर मालिकों को भरोसा ही नहीं हुआ कि वह इतने बड़े और जटिल जहाज के बारे कुछ जानता भी होगा। पर उनके पास कोई और चारा भी नहीं था। सो, उन्होंने बुजुर्ग को काम शुरू करने की इजाजत दे दी। बुजुर्ग ने भारी-भरकम इंजन का ऊपर से नीचे तक मुआयना किया। उसने हर चीज को टटोलकर देखा। उसने इंजन के पुर्जे नहीं खोले। मालिकों में से दो लोग उसे काम करता देख रहे थे कि आख़िर वह करने क्या जा रहा है।
बुजुर्ग ने कुछ नहीं किया। इंजन का निरीक्षण समाप्त करने के बाद उसने अपना औजारों वाला बैग खोला और उसमें से एक छोटी-सी हथौड़ी निकाल ली। दोनों मालिकों की निगाहें उसी पर जमी थीं। बुजुर्ग ने उस छोटी हथौड़ी से इंजन पर एक जगह हल्के प्रहार किए। और इसके साथ ही, वह घरघराकर चलने लगा। बुजुर्ग ने हथौड़ी वापस बैग में रख ली। उसका काम हो चुका था।
एक ह़फ्ते बाद मालिकों को उसकी तरफ़ से 10 हजार रुपए का बिल मिला। हालांकि इंजन को बड़े-बड़े इंजीनियर भी ठीक नहीं कर पाए थे और इस चक्कर में काफ़ी पैसा ख़र्च हो चुका था, बावजूद इसके उन्हें 10 हजार रुपए बहुत ज्यादा लगे। यह इंसानी फितरत ही है, जो काम हो जाने के बाद किसी के योगदान को कम आंकने लगती है। उन्हें लगा, सिर्फ़ दो-तीन हथौड़ी मारने के 10 हजार रुपए! यह तो कोई ज्यादा काम नहीं हुआ। तो उन्होंने उस मैकेनिक को लिखा कि आप डिटेल बिल भेजें, जिसमें अलग-अलग काम के लिए अलग-अलग चार्ज का विवरण हो।
कुछ दिनों बाद उन्हें नया बिल मिला, जिसमें बुजुर्ग ने यह विवरण दिया था:
हथौड़ी से चोट करने के ..20 रुपए
यह जानने के लिए कि चोट कहां करनी है..9980 रुपए
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