एक बहुत घना जंगल था जिसमें तरह-तरह के तमाम सारे जानवर रहते थे और वहां पर चूहों की भी एक बड़ी सी कालोनी थी जहाँ का लीडर एक मोटा सा चूहा था जो एक पेड़ के नीचे अपना बिल बना कर रहता था। उस चूहे का नाम था भीखू। उस जंगल में एक बहुत ही खूंखार शेर भी रहता था जिसका नाम था बहादुर। वह अपने परिवार के साथ जंगल के बीच में एक ऊंची सी गुफा में रहता था। आये दिन वह शेर बड़ा उत्पात मचाता रहता था। जब कभी भूख लगती तो किसी छोटे या बड़े जीव को खा जाता था। सभी जानवर उससे बड़े सहमे और डरे हुये से रहते थे।
एक दिन की बात है। वह मोटा चूहा जो अपने बिल में एक पेड़ के नीचे रहता था, चारों तरफ झाँककर तसल्ली कर लेने के बाद कि उस शेर बहादुर का कहीं दूर तक पता नहीं है, अपने बिल से निकल कर आया और गर्मीं के मारे परेशान होकर पेड़ के नीचे एक हरे पत्ते को ओढ़कर सो गया। उसने सोचा की पत्ते को ओढ़ लेने के बाद उसे शेर या कोई और जानवर नहीं देख पायेगा। वह आराम से कुछ घंटे तक सोता रहा।
अब इतनी गर्मी में शेर कहाँ अपनी माद में बैठा रह सकता था। सो वह भी टहलते-घूमते उस तरफ आ गया। उस पेड़ के नीचे से गुजर रहा था कि चूहे ने एक बड़ी जोर की चीख मारी। लगता था कि शेर का पंजा चूहे की पूँछ पर पड़ गया था। बहादुर वहीं खडा हो गया और जोर से गरजा। चूहे की तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी और काँपने लगा तथा जान बचाने के लिये भागने लगा। किन्तु शेर ने देख लिया और अपने पंजे में दबोच लिया। शेर ने कहा ''अब मैं तुझे खा जाऊँगा''। चूहा रोने लगा और मिन्नतें करने लगा, '' हे वनराज, आप मुझ पर दया करो मैं निर्बल हूँ और आप बहुत ताकत वाले हो, और फिर मेरे नन्हे से शरीर को खाकर तुम्हारा पेट भी ना भरेगा''। शेर ने कुछ सोचा और कहा, '' अगर मैं तुझे छोड़ दूं तो तू मुझे बदले में क्या देगा''? चूहा बोला, '' सरकार अब आपसे क्या तकरार करुँ बस इतना कह सकता हूँ कि मुझपर आपका यह अहसान एक क़र्ज़ की तरह होगा और मैं इसे सही मौका आने पर चुकाने की कोशिश करूँगा.....आज आप मुझे जाने दें। घर में मेरे बीबी बच्चे इन्तजार कर रहे होंगे, उनका इस दुनिया में मैं अकेला सहारा हूँ। अगर आपने मुझे खा लिया तो उन सबका क्या होगा''? शेर ने चूहे को छोड़ दिया और चूहा शेर को दुआयें देता हुआ सर पर पैर रखकर सरपट अपने बिल में भाग गया।
काफी दिन बीत गये और अब वह चूहा और शेर मित्र बन गये थे। वह शेर जंगल के और जानवरों पर तो हमला करता था किन्तु उस चूहे को नजरअंदाज कर देता था। इसीलिये वह चूहा अब चैन की साँसें लेता हुआ आराम से इधर-उधर मस्ती में अपना रोब दिखाता हुआ टहलता रहता था। शेर से दोस्ती करने का सब जानवरों पर अपनी शान झाड़ता रहता था। एक दिन जंगल में कुछ आदिवासी लोग आये और जानवरों का शिकार करने के लिये जंगल में एक जगह बड़ा सा गड्ढा खोदा और उसे तमाम झाड़-फूंस से भर दिया और एक पेड़ में रस्सी बाँध कर उसके एक छोर में फंदा बनाया और गड्ढे पर के सूखे पत्तों पर उस फंदे को रख दिया और उसे भी पत्तों से छिपा दिया। और वे लोग अगले दिन को आने की सोच कर चले गये। थोडी देर में दो लोमड़ियाँ उधर आयीं और गड्ढे में गिर गयीं उनके शरीर में तमाम कांटें चुभे और वह बेहोश होकर गड्ढे में ही पड़ीं रहीं। फिर थोडी देर में वह शेर भी घमंड से अपनी गर्दन ऊंची किये हुये इधर-उधर देखता वहां से दहाड़ता हुआ निकला और फिर......धम्म!! उसका पैर फंदे में जाकर फंस गया था और नतीजा यह हुआ की वह उल्टा लटक गया। अब तो शेर की पूछो न....दहाड़ मार कर उसने जंगल हिला दिया। दोनों लोमड़ियों को जब होश आया और शेर की नजदीकी का अहसास हुआ तो वह दम साधे चुपचाप गड्ढे में ही पड़ी रहीं। जब चूहे ने शोर सुना तो वह अपने बिल के बाहर निकल कर शोर की दिशा में चलता हुआ जा पहुंचा। और देखा की शेर लाचार होकर उल्टा लटका है और रह-रह कर गर्जना कर रहा है। शेर ने जैसे ही चूहे को देखा तो उसे पास बुलाया और कहा कि वह कुछ करे। चूहे ने कहा, '' तुम कोई चिंता ना करो एक दिन तुमने मेरी जान बख्शी थी और आज तुम मुसीबत में हो तो अब मेरा फ़र्ज़ बनता है की इस मुसीबत के समय मैं तुम्हारी सहायता करुँ''। चूहा रस्सी के सहारे शेर तक पहुँच गया और उसने शेर के पैरों में फंसे फंदे को अपने दांतों से कुतर दिया और फिर एक बार आवाज़ हुई धम्म !! क्योंकि शेर अब फंदे से मुक्त होकर जमीन पर आ गिरा था। शेर चूहे की ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हुआ और चूहे के सर से भी अहसान का बोझ उतर गया था। दोनों ही बहुत खुश थे।
इस कहानी का अभिप्राय यह है कि कोई भी शरीर से बड़ा होने पर पूरी तरह से बलवान नहीं होता और कोई भी शरीर से छोटा होने पर भी पूरी तरह से बेवकूफ नहीं होता छोटों में भी अकल होती है। इसीलिये आप लोगों ने शायद यह कहावत भी सुनी होगी की ''अकल बड़ी या भैंस''। और इस कहानी से यह भी शिक्षा मिलती है कि हमें बहुत कठोर दिल का नहीं होना चाहिये और मुसीबत के समय एक दूसरे के काम आना चाहिये।
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