मिजो कबीले की राल्टे उपजाति में दो भाई रहते थे। एक का नाम था थालसियाल तथा दूसरा था जलपाइंग। दोनों भाई बेहद गरीब थे। गाँव का मुखिया उनसे हमेशा नाराज रहता। तभी उल्टे-सीधे कामों की बेगार के लिए वह दोनों को ही बुलाता। गाँववाले भी दोनों भाईयों को सीधा समझकर अपना-अपना उल्लू सीधा करते।
एक बार मुखिया के आदेश से दोनों भाइयों को शिकार पर जाना पड़ा। गाँव के रईस शिकारियों की महफिल में गरीब भाइयों को कौन पूछता? उन्होंने तो भोजन पकाने व बिस्तर आदि लगाने के लिए भाइयों को साथ लिया था।
राह में थालसियाल ने मौथिला (शेरों से रक्षा करने वाली देवी) को प्रणाम किया तो सभी शिकारी मजाक उड़ाने लगे। ‘अरे भई! यह नौकर भी शिकार खेलेगा, इसलिए मौथिला देवी की पूजा कर रहा है।’
थालसियाल ने चुपचाप आँसू पोंछ लिए। वह चाहकर भी अपने अपमान का बदला नहीं ले सकता था। कुछ देर आगे बढ़ने पर एक शिकारी को बदन पर चेफियापा (कमरबंद) की कमी महसूस हुई। उसने बिना पूछे उसे जलपाइंग की कमर से खींच लिया। शाम को भाईयों की नजर एक विशाल अजगर पर पड़ी। वे चिल्लाते-चिल्लाते शिकारियों के पाच पहुँचे और बोले, ‘कूप (पुरुषों के लिए आदरसूचक शब्द) वहाँ एक अजगर पड़ा है।’
‘चल झूठे, हमें तो कहीं नहीं दिखा।’ उसकी बात पर शिकारियों को विश्वास नहीं हुआ। पर एक बूढ़े व्यक्ति के कहने पर वे वापस मुड़े। सचमुच एक विशाल अजगर पड़ा था, जिसे वह पेड़ का तना समझकर लाँघ गए थे। अजगर के टुकड़े किए गए।
मुखिया ने मरे हुए जानवर का काफ़ी बड़ा हिस्सा ले लिया। अन्य शिकारियों ने भी अपना-अपना हिस्सा ले लिया। दोनों भाइयों के हिस्से में अजगर का पेट ही आया, जिसे शरीर का बुरा अंग माना जाता है। क्योंकि पेट का माँस पाने के लिए बहुत गंदगी साफ करनी पड़ती है।
थालसियाल व जलपाइंग ने चुपचाप वह हिस्सा ले लिया। एकांत में ज्यों ही उन्होंने अजगर का पेट चीरा, उसमें से बहुत से आभूषण, मोती व जवाहरात निकले। शायद अजगर ने किसी व्यापारी को निगला था, जो इन आभूषणों को पहने था। दोनों ने आभूषण छिपा दिए।
मुखिया की बेटी थालसियाल को चाहती थी। मुखिया ने यह जाना तो आग-बबूला हो उठा। थालसियाल ने विवाह का प्रस्ताव रखा तो वह बोला-‘विवाह एक ही शर्त पर होगा, दहेज में कीमती आभूषण देने होंगे। थालसियाल बोला, ‘मुझे स्वीकार है।’
विवाह में दुल्हन के लिए भेजा गए पोशाक और मणियों व कौड़ियों से जड़ा कीमती कपड़े देखकर सभी चकित रह गए। थालसियाल ने एक-एक आभूषण मुखिया को सौंप दिया। ईर्ष्यालु मुखिया ने बेटी को लँगड़ी गाय भेंट की। पति-पत्नी ने सिर झुकाकर भेंट स्वीकार कर ली।
उन्होंने एक बार भी लँगड़े पशु को लेने में आनाकानी नहीं की। पर जब वही हर महीने एक गाय पैदा करने लगी तो मुखिया हैरान रह गया। अब तो दोनों भाई बहुत-से पशुधन के मालिक हो गए। अंत में उनकी विनम्रता से प्रभावित होकर गाँववालों ने उनसे माफी माँगी और उन्हें आदर-मान देने लगे।
उधर घमंडी मुखिया ने अपनी बुरी हरकतों से सारे गाँव को दुश्मन बना लिया। दोनों भाइयों से मिले आभूषण बुरी आदतों में ही खत्म हो गए और वह राजा से फकीर हो गया। सच ही तो है कि घमंडी का सर सदा ही नीचा होता है। थालसियाल व जलपाइंग जैसे विनम्र व्यक्ति ही समाज का सिरमौर होते हैं।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें