18 नवंबर, 2009

सिंहासन बत्तीसी - कहानी संग्रह

vikramadityaमहाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर प्रकाश डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परंपरा रही है। सिंहासन बत्तीसी भी 32 कथाओं का संग्रह है जो बेताल पंचविशाति की भांति लोकप्रिय हुआ। संभवत: यह संस्कृत की रचना है जो उत्तरी संस्करण में सिंहासन द्वात्रींशिका तथा विक्रमचरित के नाम से दक्षिणी संस्करण में उपलब्ध है।

पहले के संस्कर्ता एक मुनि कहे जाते हैं जिनका नाम क्षेभेंद्र था। बंगाल में वररुचि के द्वारा प्रस्तुत संस्करण भी इसी के समरूप माना जाता है। इसका दक्षिणी रूप ज्यादा लोकप्रिय हुआ और लोक भाषाओं में इसके अनुवाद होते रहे। पौराणिक कथाओं की तरह भारतीय समाज में मौखिक परंपरा के रूप में रच-बस गए। 32 कथाएं 32 पुतलियों के मुख से कही गई हैं जो एक सिंहासन में लगी हुई हैं।

एक साधारण-सा चरवाहा अपनी न्यायप्रियता के लिए विख्यात है जबकि वह बिल्कुल अनपढ़ है तथा पुश्तैनी रूप से उनके ही राज्य के कुम्हारों की गायें, भैंसे तथा बकरियां चराता है। जब राजा भोज ने तहकीकात कराई तो पता चला कि वह चरवाहा सारे फैसले एक टीले पर चढ़कर करता है। राजा भोज की जिज्ञासा बढ़ी और उन्होंने खुद भेष बदलकर उस चरवाहे को एक जटिल मामले में फैसला करते देखा। उसके फैसले और आत्मविश्वास से भोज इतना अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने उससे उसकी इस अद्वितीय क्षमता के बारे में जानना चाहा। जब चरवाहे ने जिसका नाम चंद्रभान था बताया कि उसमें यह शक्ति टीले पर बैठने के बाद स्वत: चली आती है। भोज ने सोच-विचार कर टीले को खुदवाकर देखने का फैसला किया। जब खुदाई संपन्न हुई तो एक राजसिंहासन मिट्टी में दबा दिखा। यह सिंहासन कारीगरी का अभूतपूर्व नमूना था। इसमें बत्तीस पुतलियां लगी थीं तथा कीमती रत्न जड़े हुए थे। जब धूल-मिट्टी की सफाई हुई तो सिंहासन की सुंदरता देखते ही बनती थी। उसे उठाकर महल लाया गया तथा शुभ मुहूर्त में राजा का बैठना निश्चित किया गया। जैसे ही राजा ने बैठने का प्रयास किया सारी पुतलियां राजा का उपहास करने लगीं। खिलखिलाने का कारण पूछने पर सारी पुतलियां एक-एक कर के विक्रमादित्य की कहानी सुनाने लगीं तथा बोली कि यह सिंहासन राजा विक्रमादित्य का है इस पर बैठने वाला उसकी तरह योग्य, पराक्रमी, दानवीर तथा विवेकशील होना चाहिए।

बत्तीस पुतलियों के नाम

1 रत्नमंजरी

2 चित्रलेखा

3 चंद्रकला

4 कामकंदला

5 लीलावती

6 रविभामा

7 कौमुदी

8 पुष्पवती

9 मधुमालती

10 प्रभावती

11 त्रिलोचना

12 पद्मावती

13 कीर्तिमति

14 सुनयना

15 सुंदरवती

16 सत्यवती

17 विद्यावती

18 तारावती

19 रूपरेखा

20 ज्ञानवती

21 चंद्रज्योति

22 अनुरोधवती

23 धर्मवती

24 करुणावती

25 त्रिनेत्री

26 मृगनयनी

27 मलयवती

28 वैदेही

29 मानवती

30 जयलक्ष्मी

31 कौशल्या

32 रानी रूपवती


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