इस झूठे का नाम ‘गरन’ था, किंतु उसे लुईस डी रोगमाउंट के नाम से जानती थी। उसको जीवन भर फ्रांसीसी समझा जाता रहा, जबकि वह वास्तव में स्वीडन का रहने वाला था। उसने संसार को अपना नाम भी ग़लत बताया और अपनी नागरिगता भी।
उसके जीवन की सबसे शानदार झूठ की कहानी 1898 से शुरू होती है, जब लंदन की एक लोकप्रिय पत्रिका ने यह घोषणा की कि अगले अंक में एक ऐसे फ्रांसीसी की आत्मकथा धारावाहिक प्रकाशित की जाएगी, जिसका जहाज़ आस्ट्रेलिया के तट के निकट डूब गया था और उसके बाद अगले तीस वर्ष तक वह कैनबल कबीले के सरदार के रूप में आस्ट्रेलिया के जंगलों में रहा था।
जब गरन की आत्मकथा धारावाहिक छपनी शुरू हुई, तो पत्रिका का प्रकाशन चौगुना हो गया। प्रत्येक व्यक्ति ने गरन की आत्मकथा पर विश्वास कर लिया। गरन ने अपनी आत्मकथा में लिखा था, मेरा जहाज़ डूबा, तो मेरा कुत्ता मुझे तट तक घसीटकर ले गया। तट पर घना जंगल था। उस जंगल में मुझे दो वर्ष तक भटकना पड़ा। एक दिन सहसा मेरी मुलाक़ात एक ख़ानाबदोश कबीले से हो गई। उसने मुझे एक कबाइली गांव तक पहुंचा दिया। इस गांव में मेरी बहुत आवभगत हुई और तीन महीने के बाद यहीं मेरी शादी एक कबाइली लड़की से कर दी गई। उस लड़की का नाम यम्बा था। उस गांव में मेरे आलावा हर स्त्री और पुरुष निरावरण रहता था।
उसने यहां तक लिख दिया, मैं एक कुल्हाड़ी लेकर जंगल में शिकार की तलाश में घूमा करता था। एक दिन मैंने उसी मामूली कुल्हाड़ी से एक मगरमच्छ को मार डाला और कबाइली मर्दो ने मुझे कबीले का सरदार बना दिया। बादशाह बनने के बाद मैं एक कछुए की पीठ पर बैठकर घूमा करता था। लेखक के रूप में गरन की लोकप्रियता की कोई सीमा न रही। एक क्षण के लिए भी किसी के मस्तिष्क में यह संदेह नहीं पैदा हुआ कि यह कहानी झूठी भी हो सकती है।
एक दिन उसके प्रशंसकों का एक प्रतिनिधिमंडल उससे मिलने के लिए लंदन पुहंचा, तो वहां उन्हें ख़बर मिली कि उनका प्रिय लेखक फ्रांस में है। गरन पूरे तीस वर्ष आस्ट्रेलिया में ठहरा था। उसके कई प्रशंसकों को संदेह हो गया। अख़बारों में उसके विरुद्ध पत्र छपने लगे और यह मांग की जाने लगी कि वह जनता के सामने आकर अपनी शक्ल दिखाए।
गरन उनके सामने आ गया। जन-समूह ने उससे आस्ट्रेलिया के बारे में और उसके क़बीले के बारे में प्रश्न किए। गरन उनका संतोषजनक उत्तर न दे सका। इस प्रकार उसका व्यक्तित्व नंगा हो गया। वह उस युग का सबसे बड़ा झूठा साबित हो गया। वह कभी आस्ट्रेलिया गया ही नहीं था। गरन का बुढ़ापा लंदन की सड़कों पर माचिल बेचते हुए बीता और चंदा जमा करके उसे क़ब्र में उतारा गया। अंग्रेज़ी साहित्य में गरन आज भी जीवित है।
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