सिने कलाकार दिलीप कुमार को दुनिया एक महान एक्टर यानी अदाकार के तौर पर जानती है, लेकिन कम लोग जानते हैं कि उर्दू अदब में उनकी गहरी दिलचस्पी थी। मीर, ग़ालिब, फ़ैज़ आदि बड़े शायरों का कलाम उन्हें ज़बानी याद था।
एक बार दिलीप कुमार अपने मित्रों फ़िल्मी कलाकार राज कपूर और राजिंदर कुमार के साथ गाड़ी में बंबई से बंगलौर जा रहे थे तथा वह फ्रंट सीट पर राजिंदर कुमार के साथ बैठे थे। पिछली सीट पर बैठे राज कपूर शराब पी रहे थे। राजकपूर ज़रा तरंग में आए, तो दिलीप कुमार को संबोधित कर बोले- ‘यार, कोई शेर सुना।’ दिलीप कुमार ने निराश नहीं किया, बल्कि फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की एक मशहूर नज्म ‘तन्हाई’ सुनाने लगे।
‘अपने ब़ेख्वाब किवाड़ों को मुकफ़िल कर लो’, पहला ही मिसरा सुनकर राजकपूर ने हाथ के इशारे से दिलीप कुमार को टोका और बोले- ‘यार, ‘मुकफ़िल’ का क्या मतलब है?’ राजकपूर को नशे की हालत में देखकर दिलीप कुमार ने इस शब्द का आसान-सा मतलब सोचते हुए कहा- ‘इसका मतलब है ताला बंदी।’ राजकपूर रोने लगे और बोले- ‘लानत है मुझ पर।
मैं पृथ्वीराज का पुत्तर हूं और मुझे ‘मुकफ़िल’ का मतलब पता नहीं।’ इसके बाद उसने दिलीप कुमार से सारी नज्म सुनी और ख़ूब वाह वाह की।
कुछ समय के बाद फ़ैज़ बंबई आए तथा राजकपूर के स्टूडियो में उनके सम्मान में एक समारोह का आयोजन हुआ तथा खाने के बाद उनसे शेर सुनाने की फ़रमायश हुई। उन्होंने बहुत धीमे अंदाज़ में अपनी न•म ‘तन्हाई’ सुनानी शुरू की- ‘आपने ब़ेख्वाब किवाड़ों को मुकफ़िल कर लो’- तो राजकपूर फ़ौरन खड़े हो गए और बोले- ‘फ़ैज़ साहिब, आप बहुत बड़े शायर हैं। बुरा न मानें, यह न•म तो हमारे दिलीप कुमार साहिब की है। आप कोई अपना कलाम सुनाएं।’ फ़ैज़ साहिब ने मुस्कुराकर दिलीप कुमार की तरफ़ देखा और दूसरे ही क्षण अपनी एक अन्य न•म सुनाने लगे।
दिलीप कुमार और अंग्रेज़ी शायर बायरन में बहुत-सी बातों में समानता है। लार्ड बायरन अदब का आदमी थे, लेकिन उन्हें अभिनय का हुनर भी आता था। दिलीप कुमार अभिनय की दुनिया के आदमी हैं, लेकिन अदब में उनकी बहुत गहरी पैठ है। इटली में लार्ड बायरन एक ऐसे मकान में रहते थे, जो दरिया किनारे था। बायरन खिड़की में बैठकर काव्य रचना करते थे। इटली के एक कसाई अजीस की बहुत ही ख़ूबसूरत बीवी थी, जवान और शोख़ थी।
एक दिन उन दोनों में झगड़ा हो गया तथा बीवी ने दरिया में छलांग लगा दी और तैरती हुई वह खिड़की के पास आ गई। बायरन उसे देखते ही शायरी भूल गए, हाथ बढ़ाकर उसे पानी से निकाला और भीतर ले आए। छ: महीने वह अपने हुस्न की छुरी बायरन पर चलाती रही और जब वह कण-कण होकर पूरे घर में बिखर गए, तो उन्होंने दोबारा दरिया में छलांग लगा दी और अपने कसाई पति के पास लौट गई।
दिलीप के साथ भी सायरा बानो ऐसे अंदाज में मिलीं तथा उन्होंने हुस्न के आगे सर-तसलीम-ख़म कर दिया। फिर अचानक दिलीप कुमार आसिमा के इश्क़ में गिऱफ्तार हो गए। शादी कर ली, लेकिन जब सायरा ने वावेला मचाया, तो आसिमा को तलाक़ देकर, इश्क़ के दरिया में तैरते हुए, सायरा के पास लौट आए। तो हुई न दिलीप कुमार और बायरन में इश्क़ की समानता।
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rochak samantaye,achchhi jankari.
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