नई-नई आई वह रोगिणी मेरे परामर्श कक्ष से जाने लगी, तो उसने मुड़कर मुझे अजीब सी नजरों से देखा।
‘क्या हुआ..?’ मैंने पूछा।
‘कह नहीं सकती!’ वह बोली- ‘मैं निर्धारित समय से पांच मिनट पहले चली आई थी पर आपने मुझे तुरंत भीतर बुला लिया और ढेर-सा वक्त भी दिया। आपने जो-जो हिदायतें दी, उनका एक-एक शब्द मैं समझ गई, आपने दवा की जो पर्ची लिखकर दी है, इसे भी मैं पढ़ सकती हूं!’ अब उसने और गंभीरता से पूछा- ‘आप सच्ची-मुच्ची डॉक्टर हो न?’
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें