29 जनवरी, 2010

थपकी वाली रोटी - कहानी

घर में मेहमान आया। घर के सदस्यों द्वारा आदर-सत्कार हुआ। एक ने आकर राम-राम की। दूसरे ने पानी पिलाया। तीसरे ने कुशलक्षेम पूछी। दिन अस्त होने को आया। अंधेरा घिर आया। रात पड़ने लगी। खाने की तैयारियां शुरू हो गईं। घर में छह प्राणी थे। कमाने वाला एक ही था। सुबह कमाता, शाम को सब खाते। रोटियां बननी शुरू हुईं।

रोटियों की खुशबू से घर में सोए मेहमान की भूख भड़क उठी। सोया-सोया सुनता रहा रसोई में बन रही रोटियों की थपकियां। कुल छह ही थपकियां बजी। शायद आटा इतना ही था। मेहमान के लिए रोटी आई। मेहमान ने कहा- ‘मुझे भूख नहीं है। आते वक्त खाना खाकर ही तो आया।’ और वह सो गया। सोच रहा था- ‘मेरे खातिर घर का कोई एक सदस्य भूखा क्यों सोए? मैं आज नहीं खाऊंगा, तो क्या फर्क पड़ जाएगा।’ और वह सुबह जल्दी निकल गया।


बूढ़ी मां अपने बेटी को दांत पीस धमका रही थी-‘तुमसे बिना थपकी बजाए रोटी नहीं बनती। बेचारा मेहमान भूखा चला गया।’

देवेन्द्र कुमार भाट

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Related Posts with Thumbnails