माना जाता है कि उनका जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद ज़िले में एक समृद्द परिवार में हुआ. लेकिन उनकी स्कूली शिक्षा इंदौर में हुई.
साथ ही घर पर उन्हें चित्रकला और संगीत कला की शिक्षा मिली. 1932 में महादेवी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत साहित्य में एमए की उपाधि ली.
नौ वर्ष की छोटी आयु में महादेवी का विवाह हो गया. लेकिन उन्होंने कम उम्र में हुई अपनी इस शादी को नहीं माना.
महात्मा बुद्द के जीवन-दर्शन से महादेवी काफ़ी प्रभावित रहीं.
एक बार उन्होंने निश्चय किया कि वे विवाहित जीवन का परित्याग कर बौद्ध भिक्षुणी हो कर रहेंगी.
लेकिन एमए करने के बाद महादेवी ने अपने भिक्षुणी होने के स्वप्न को सेवा द्वारा साकार करना चाहा.
वे पति से अलग रह कर एकाकी जीवन जीती रहीं. इलाहाबाद में प्रयाग महिला विद्यापीठ के विकास में महादेवी ने महत्वपूर्ण योगदान दिया.
इस महिला विद्यापीठ के प्रधानाचार्य के रूप में उन्होंने काम किया. प्रसिद्ध पत्रिका ‘चाँद’ का संपादन भी महादेवी ने किया.
अलग स्वर
वैसे तो छायावादी काव्य में निराला, प्रसाद और पंत के काफ़ी बाद उनका आगमन हुआ लेकिन उनका स्वर इन सबसे अलग है.
उनकी कविता में रहस्यवाद का पुट है. पीड़ा और प्रियतम उनके यहाँ ऐसे घुले-मिले हैं कि उन्हें अलग नहीं किया जा सकता. ‘तुम को पीड़ा में ढूँढ़ा, तुम में ढूढूँगी पीड़ा’ जैसी पंक्तियाँ इसका उदाहरण हैं.
महादेवी के काव्य में दुखवाद, पीड़ावाद, निराशावाद की अभिव्यक्ति को प्राय सभी आलोचकों ने रेखांकित किया है.
लेकिन इनकी कविताओं के मूल में मुक्ति की आकांक्षा है. ‘रात के उर में दिवस की चाह का शर हूँ’ जैसी पंक्तियाँ इसी ओर इशारा करती हैं.
1930 में प्रकाशित निहार उनकी पहली काव्य कृति है. इसके अलावे रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा आदि उनकी प्रमुख काव्य रचना हैं.
उनकी गद्य रचनाओं में सामाजिक पक्षों की अभिव्यक्ति पुरजोर ढंग से हुई है. अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ उनकी प्रमुख रेखाचित्र हैं.
1942 में प्रकाशित ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’ स्त्री विषयक चिंतन की वजह से हिन्दी साहित्य की प्रमुख रचना है.
इस पुस्तक में महादेवी ने ‘जन्म से अभिशप्त और जीवन से संतप्त’ भारतीय नारी की स्थिति का विश्लेषण किया है.
इसके अतिरिक्त क्षणदा, संकल्पिता और संभाषण आदि उनकी प्रमुख गद्य रचनाएँ हैं और पथ के साथी, मेरा परिवार और स्मृतिचित्रा में उनके संस्मरण हैं.
महादेवी को भारतीय साहित्य के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
यह पुरस्कार उन्हें उनकी कविताओं के संकलन यामा के लिए 1982 में दिया गया. 1956 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया.
साहित्य अकादमी ने 1981 में महत्तर सदस्यता प्रदान की.
11 सितंबर,1987 को इलाहाबाद में महादेवी का देहांत हुआ। 1988 में मरणोपरांत भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया.
बीबीसी से साभार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें