कंपनी ने सोचा कि सैन्य प्रशिक्षण से उसके कर्मचारियों के फोकस, समस्या सुलझाने की क्षमता और अनुशासन में बढ़ोतरी होगी। सो, उसने वरिष्ठ तकनीकी सहायता स्टाफ को सैन्य अकादमी में भेजा। वहां सबसे पहले उन्हें राइफल रेंज में ले जाया गया और राइफल, गोली, लक्ष्य आदि के बारे में जानकारी दी गई। उन्हें लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने और धड़कनों को काबू में रखकर घोड़ा दबाने के बारे में बताया गया। फिर उन्हें राइफल और कुछ गोलियां देकर टारगेट पर निशाना लगाने के लिए कहा गया।
उन कर्मचारियों ने पोजीशन ली और गोलियां चलाना शुरू कर दिया। धांय-धांय..धांय। निशानेबा का पहला दौर समाप्त होने पर यह देखा गया कि किस कर्मचारी की कितनी गोलियां निशाने पर लगीं। टारगेट की ओर खड़े सैनिकों ने हर टारगेट को जांचा। उन्होंने देखा कि एक कर्मचारी का कोई भी निशाना सही नहीं लगा था। उसे दुबारा निशाना लगाने के बारे में समझाया गया और फिर से कुछ गोलियां दी गईं। कर्मचारी ने राइफल संभाली और अपनी पोजीशन ले ली। उसने सोचा कि हो सकता है राइफल में ही कुछ गड़बड़ हो। सो, उसने पहले राइफल को ही अच्छी तरह जांचने का फ़ैसला किया। उसने नली में से देखा, तो टारगेट नÊार आ रहा था। इसके बाद उसने उसमें गोली भरी और Êामीन की तरफ़ नली करके घोड़ा दबा दिया।
धांय की आवा हुई, कुछ धूल उड़ी और Êामीन पर छोटा-सा गड्ढा बन गया। वह खों-खों करने लगा। Êामीन से उठती धूल और उसे खांसता देखकर लोग उसकी तरफ़ दौड़े। उन्होंने देखा कि वह तो हंस रहा था। एक सैन्य अधिकारी ने उससे कड़ककर पूछा कि क्या हुआ? वह हंसते हुए बोला, ‘यह तो काम कर रही है। आप लोग बेकार में ही मुझे दोषी ठहरा रहे थे।’ किसी को कुछ समझ में न आया। वह कर्मचारी टारगेट वाले सिरे की ओर इशारा करते हुए चिल्लाया, ‘मेरी राइफल बिल्कुल सही ढंग से काम कर रही है। ट्रिगर दबाने पर गोली भी बराबर छूट रही है। इसका मतलब है कि दि़क्क़त तो टारगेट वाले सिरे की ओर है। फिर निशाना सही नहीं लग पा रहा है, तो मेरी क्या ग़लती?’
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