23 जनवरी, 2010

आंखों ने इंतजार किया, हमने क्या किया - ग़ज़ल - दाग़ देहलवी

ग़म उस पर आशक़ार किया, हमने क्या किया
ग़ाफ़िल को होशियार किया, हमने क्या किया



हां-हां, तड़प-तड़प के गुजरी तुम्हीं ने रात
तुमने ही इंतजार किया, हमने क्या किया



इतरा रहा है नक़दे-मुहब्बत पे दिल बहुत
ओछे को मालदार किया, हमने क्या किया



क्या फ़र्ज था कि सब्र ही करते फ़िराक़ में
क्यों जब्र ए़ख्तियार किया, हमने क्या किया



नासेह भी है रक़ीब, यह मालूम ही न था
किसको सलाहकार किया, हमने क्या किया



तड़पा है दिल और खाए जिगर ने भी दाग़े-हिज्र
आंखों ने इंतजार किया, हमने क्या किया



मायने
आशक़ार=प्रकट करना/ग़ाफ़िल=लापरवाह/नासेह=नसीहत देने वाला, सदुपदेशक/रक़ीब= एक स्त्री से प्रेम करने वाले दो व्यक्ति

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