30 जनवरी, 2010

भय - कहानी (श्याम नारायण श्रीव)

वह गांव में रहता था। बहुत खुश था। पूरा परिवार एक साथ था। माता-पिता, भाई-बहन सब एक साथ। वह पला-बढ़ा और उच्च शिक्षा ली। फिर नगर में जाकर कम आय की नौकरी करने लगा। एक साइकिल खरीद ली। प्रतिदिन शाम को घर वापस आ जाता था। वह अब भी खुश था। परिवार का उत्तरदायित्व निभा रहा था। उसकी शादी हो गई। इच्छाएं बढ़ीं, तो पांव के लिए उसकी चादर छोटी पड़ने लगी। वह एक नगर से दूसरे नगर में आ गया। आय बढ़ गई। किंतु परिवार दूर हो गया।

दिन-माह-वर्ष पंख लगाकर उड़ने लगे। दिन-प्रतिदिन उसकी चादर छोटी होने लगी। नगर से महानगर की ओर भागा। इस भाग-दौड़ में परिवार की परिभाषा भी बदल गई। उसकी पत्नी और तीन बच्चे, बस यही रह गया परिवार कहने को।



दूर छूट गया उसका गांव, माता-पिता, भाई-बहन और संगी साथी। महानगर की भीड़ में उसे स्पष्ट दिख रही थी, बड़ी मछली द्वारा छोटी मछली को निगल जाने की क्रिया। नदी के समुद्र में विलुप्त हो जाने की प्रक्रिया और बार-बार छोटी होती चादर को बढ़ाने की लालसा में अपने परिवार की सुख-शांति के समाप्त हो जाने का सम्पूर्ण भय।

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