25 जनवरी, 2010

सुल्तान और फ़क़ीर - कहानी

एक फ़क़ीर ध्यान में मग्न बैठा था। पास से सुल्तान की सवारी निकली। ध्यानमग्न फ़क़ीर को पता भी नहीं चला। लेकिन सुल्तान की नज़र उस फ़क़ीर पर पड़ गई। वह चिढ़कर बोला, ‘ये फटे-पैबंध लगे चोगे वाले अपने को समझते क्या हैं? इनमें जरा भी सलीक़ा-शिष्टाचार नहीं है!’

सुल्तालन का वजीर फ़क़ीर के पास पहुंचा और बोला, ‘माना कि तुम बड़े आध्यात्मिक आदमी हो, पर इतनी तमीज़तो होनी चाहिए कि दुनिया का सबसे ताक़तवर सुल्तान जब सामने से गुज़रे,तो खड़े होकर उसका अभिवादन कर सको।’

फ़क़ीर ने तीखी नज़र से वजीर को देखा और कहा, ‘अपने सुल्तान को बता दो कि वह अभिवादन की उम्मीद उनसे रखे, जो उसकी उदारता से कोई लाभ हासिल करते हैं। साथ में उन्हें यह भी बता दो कि भगवान ने प्रजा की देखभाल के लिए सुल्तान बनाए हैं, सुल्तान की सेवा के लिए लोग नहीं बनाए।’

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