17 जनवरी, 2010

सेल्समैन और मैनेजर - कहानी

एक आदमी काम की तलाश में छोटे क़स्बे से बड़े शहर में पहुंचा था। वह अपने क़स्बे में भी अच्छा काम कर रहा था, लेकिन वहां तऱक्क़ी की गुंजाइश कम थी, इसलिए वह शहर आ गया था। शहर में उसने एक बड़ी दुकान के मैनेजर से संपर्क किया। मैनेजर ने कहा कि सेल्समैन की जगह तो ख़ाली है, पर तुम्हें इस काम का कितना अनुभव है। उसने जवाब दिया, ‘अपने क़स्बे में मैं बड़ा अच्छा सेल्समैन समझा जाता था।’ मैनेजर ने कहा, ‘वह तो एक दिन में ही पता चल जाएगा। दिनभर के तुम्हारे प्रदर्शन के आधार पर तय होगा कि तुम यहां काम करने के काबिल हो या नहीं।’ उस आदमी को मौक़ा मिल गया।

रात को दुकान का शटर गिरने के बाद मैनेजर ने उसे बुलाकर पूछा कि उसने दिनभर में कितने ग्राहकों को कुछ ख़रीदने के लिए राÊाी किया। आदमी ने जवाब दिया, ‘एक।’ मैनेजर- ‘बस एक! हमारा एक औसत सेल्समैन दिनभर में 20-30 ग्राहकों को कुछ न कुछ बेच देता है। ख़ैर, तुमने कितने पैसों का सामान बेचा उसे?’ जवाब मिला, ‘12,26,632 रुपयों का।’ इतनी बड़ी रक़म सुनकर मैनेजर को बड़ा आश्चर्य हुआ। ‘ऐसा क्या बेच दिया तुमने उसे?’



क़स्बे के आदमी ने जवाब दिया, ‘पहले मैंने उसे मछली पकड़ने का कांटा बेचा। उसके बाद मैंने उसे मछली मारने की पूरी किट बेची। फिर मैंने उस ग्राहक से पूछा कि वह मछलियां पकड़ने कहां जाएगा। जब उसने बड़ी नदी का नाम लिया, तो मैंने उसे सुझाव दिया कि क्यों न वह एक मोटरबोट भी ख़रीद ले। मोटरबोट लेने के बाद उसे ख्याल आया कि उसकी पुरानी जीप बोट को ढोकर नदी तक नहीं ले जा पाएगी, तो उसने नई जीप के बारे में पूछताछ की। तब मैं उसे आटोमोटिव डिपार्टमेंट में ले गया और उसने लगे हाथ जीप और ट्रॉली भी ख़रीद ली।’



मैनेजर ने अविश्वास से लगभग चीख़ते हुए कहा, ‘वह मछली पकड़ने का कांटा लेने आया था और तुमने उसे इतना सबकुछ बेच डाला!’ उस आदमी ने जवाब दिया, ‘नहीं, दरअसल वह तो घर पर डिनर के लिए कैंडल लेने आया था।’



1. संख्या नहीं, गुणवत्ता महत्वपूर्ण होती है।
2. संभावनाओं का कोई ओर-छोर नहीं होता।

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