25 जनवरी, 2010

इश्क़

साहित्यकारों की ही नहीं आम आदमी की भी और पार्टियों के वर्करों की भी ज़िंदगी रंगीनियों से भरी हो सकती है। यह सब तो आदमी के स्वभाव पर निर्भर करता है। ऐसा ही एक एहसास यहां..

पिछले दिनों लाहौर में हमीद अ़ख्तर से हुई मुलाक़ात और बातचीत बहुत दिलचस्प थी। वह साहिर लुधियानवी और उनके इश्क़ की बातें कर रहे थे, तो मैंने कहा-‘आप साहिर के क़रीबी दोस्तों में से हैं तथा उनके हर इश्क़ की कहानी के गवाह भी हैं। लेकिन क्या आपने कभी इश्क़ नहीं किया?’



वह धीमे से मुस्कुराए और धीरे से बोले, ‘देश विभाजन के बाद मैं पाकिस्तान चला आया था और लाहौर में संत नगर के एक मकान के आधे हिस्से में रह रहा था। एक चारपाई, दरी, तकिया, मेज और ख़स्ताहाल दो कुर्सियों के अलावा चाय के दो बर्तन ही मेरी मलकियत थे। इस मकान पर ताला भी कम ही लगता था, बल्कि दरवाÊो आमतौर पर खुले ही रहते थे। मोहल्ले की एक नौजवान लड़की मुझ पर बहुत मेहरबान थी।



यद्यपि उस लड़की में कोई ख़ास बात तो नहीं थी, लेकिन जवानी के मौसम में ऐसे हादसात प्राय: सभी को पेश आते हैं। कम्युनिस्ट पार्टी से मेरा संबंध था तथा इसी हवाले से मैं इस तरह की बातों से सचेत और सावधान रहता था। इस ख़ातून का इसरार था कि मैं घर पर रहते समय इसके चारों दरवाÊो खुले रखूं ताकि जिस दरवाÊो से भी उसे दाख़िल होने का मौक़ा मिले, वह उसे इस्तेमाल में ले आए।



एक दिन हमारी पार्टी का एक कामरेड दोस्त अबदुल्ला मलिक भी हमें मिलने आया और खुले दरवाÊो से उसी तरह भीतर आ गया, जिस तरह वह लड़की आती थी। इस समय भी वह अंदर मौजूद थी और मलिक को देखते ही वह भाग गई। मलिक ने मुझे डराना-धमकाना शुरू किया कि तुम कामरेड होकर ऐसा काम कर रहे हो। मैंने सच बोला कि बस दिल लगी तक ही सीमित है। लेकिन उसने धमकी दी कि वह इसकी रिपरेट कर देगा।



मैं उसकी बात से इतना घबराया कि रात को सो नहीं सका और सोचता रहा कि अगर रिपरेट हो गई, तो पार्टी से निकाल दिया जाऊंगा। रातभर सोचने के बाद अगली सुबह साइकिल लेकर ख़ुद बन्ने भाई (अली सज्जाद ज़हीर) के पास पहुंचकर अपनी रिपरेट दर्ज करा दी कि शायद Êाुर्म क़बूल करने के बाद आसानी से माफ़ी मिल जाए। मैंने कहा- ‘बन्ने भाई, मुझे माफ़ कर दो। बहुत बड़ी भूल हो गई। मगर मेरा कसूर हरगिज़ नहीं हैं।



मेरा दिल साफ़ है। वह लड़की ही मेरे पीछे पड़ी है। वह ख़ुद ही आती है, बातें करती है और चली जाती है। मैं इस ग़लती पर नादम हूं । वादा करता हूं कि आइंदा ऐसा कुछ नहीं होगा, बल्कि वह घर ही छोड़ दूंगा’ मैंने मलिक की बात बताई कि वह आपसे मेरी शिकायत करने वाले हैं। मेरी बात समाप्त होने पर कुछ देर ख़ामोशी रही। मैंने नज़र उठाकर देखा, तो बन्ने भाई मुस्कुरा रहे थे।



वह सहजभाव से बोले- ‘मलिक को बकने दो। कम्युनिस्ट पार्टी इश्क़ करने पर पाबंदी थोड़े ही लगाती है। यह तो इंसानी फ़ितरत है। नौज़वान इश्क़ न करें, तो इनकी ज़िंदगी अधूरी। इश्क़ के बग़ैर इंसान अधूरा है। हमारी पार्टी में रहते हुए कैफ़ी आज़मी ने इश्क़ किया, अली सरदार जाफ़री, मज़ाज, कृश्न चंदर और साहिर ने इश्क़ किया, तो क्या बुरा किया। ये सब तऱक्क़ी पसंद हैं और तुम भी, लेकिन क्योंकि सियासी वर्कर हो, इसलिए ज़रा एहतियात से काम लेना॥। यह फैसला सुनकर हम शेर हो गए। शाम को मलिक मिला, तो बात बताते हुए उससे कहा- ‘हमें तो इश्क़ की इजाÊात मिल गई है। अब तुम करते फिरो रिपरेट’। वह बोला,‘यार मैं तो पार्टी लेने के लिए मज़ाक़ कर रहा था। तुमने गुड़-गोबर कर दिया।’



- डॉ. केवल धीर

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